गुरुवार, 26 दिसंबर 2024

आखिर क्या होते है संस्कार? ..


संस्कार क्या है?



एक राजा के पास सुन्दर घोड़ी थी। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये और घोड़ी राजा के लिए पूरी वफादार थी| कुछ दिनों के बाद इस घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया| बच्चा काना पैदा हुआ, पर शरीर हष्ट पुष्ट व सुडौल था।


बच्चा बड़ा हुआ| बच्चे ने मां से पूछा- मां मैं बहुत बलवान हूँ, पर काना हूँ.... यह कैसे हो गया| इस पर घोड़ी बोली: "बेटा जब में गर्भवती थी| तू पेट में था तब राजा ने मेरे ऊपर सवारी करते समय मुझे एक कोड़ा मार दिया, जिसके कारण तू काना हो गया।


यह बात सुनकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और मां से बोला: "मां मैं इसका बदला लूंगा।"


मां ने कहा "राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है, तू जो स्वस्थ है....सुन्दर है, उसी के पोषण से तो है|  यदि राजा को एक बार गुस्सा आ गया तो इसका अर्थ यह नहीं है, कि हम उसे क्षति पहुचाये"| पर उस बच्चे के समझ में कुछ नहीं आया, उसने मन ही मन राजा से बदला लेने की सोच ली।


एक दिन यह मौका घोड़े को मिल गया|    राजा उसे युद्व पर ले गया । युद्व लड़ते-लड़ते राजा एक जगह घायल हो गया, घोड़ा उसे तुरन्त उठाकर वापस महल ले आया।


इस पर घोड़े को ताज्जुब हुआ और मां से पूछा: "मां आज राजा से बदला लेने का अच्छा मौका था, पर युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही ले पाया, मन ने गवारा नहीं किया....इस पर घोडी हंस कर बोली: बेटा तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा है ही नहीं, तू जानकर तो धोखा दे ही नहीं सकता है।"


"तुझ से नमक हरामी हो नहीं सकती, क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है।"


यह सत्य है कि जैसे हमारे संस्कार होते है, वैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है, हमारे पारिवारिक-संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाते हैं, माता-पिता जिस संस्कार के होते हैं, उनके बच्चे भी उसी संस्कारों को लेकर पैदा होते हैं।


*हमारे कर्म ही 'संस्‍कार' बनते हैं और संस्कार ही प्रारब्धों का रूप लेते हैं! यदि हम कर्मों को सही व बेहतर दिशा दे दें, तो संस्कार अच्छे बनेगें और संस्कार अच्छे बनेंगे तो जो प्रारब्ध का फल बनेगा, वह मीठा व स्वादिष्ट होगा।

आखिर क्या होते है संस्कार? .. 

संस्कार का मतलब है शुद्धिकरण| संस्कारों का मकसद व्यक्ति को उसके समुदाय का योग्य सदस्य बनाना और उसके शरीर, मन, और मस्तिष्क को पवित्र करना है| संस्कारों के ज़रिए व्यक्ति में अच्छे गुणों का विकास होता है| संस्कारों के दो रूप होते हैं - आंतरिक और बाहरी| बाहरी रूप को रीति-रिवाज कहते हैं| आंतरिक रूप हमारी जीवन-चर्या है| 

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