शनिवार, 28 दिसंबर 2024

चरित्र (प्रेरणादायक कथा)


चरित्र (प्रेरणादायक कथा)



"चरित्र का मतलब है किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत और नैतिक विशेषताएं, आदतें, व्यवहार, और मूल्य| यह किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का अहम हिस्सा होता है और उसके विचारों, कार्यों, और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है| चरित्र, किसी व्यक्ति की पहचान का अहम हिस्सा होता है"



एक राजपुरोहित थे। वे अनेक विधाओं के ज्ञाता होने के कारण राज्य में अत्यधिक प्रतिष्ठित थे। बड़े-बड़े विद्वान उनके प्रति आदरभाव रखते थे|  पर उन्हें अपने ज्ञान का लेशमात्र भी अहंकार नहीं था। उनका विश्वास था कि ज्ञान और चरित्र का योग ही लौकिक एवं परमार्थिक उन्नति का सच्चा पथ है। प्रजा की तो बात ही क्या स्वयं राजा भी उनका सम्मान करते थे और उनके आने पर उठकर आसन प्रदान करते थे।


एक बार राजपुरोहित के मन में जिज्ञासा हुई कि राजदरबार में उन्हें आदर और सम्मान उनके ज्ञान के कारण मिलता है अथवा चरित्र के कारण? इसी जिज्ञासा के समाधान हेतु उन्होंने एक योजना बनाई। योजना को क्रियान्वित करने के लिए राजपुरोहित राजा का खजाना देखने गए।

 

खजाना देखकर लौटते समय उन्होंने खजाने में से पाँच बहुमूल्य मोती उठाए और उन्हें अपने पास रख लिया। खजांची देखता ही रह गया। राजपुरोहित के मन में धन का लोभ हो सकता है। खजांची ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था।


 उसका वह दिन उसी उधेड़बुन में बीत गया।


दूसरे दिन राजदरबार से लौटते समय राजपुरोहित पुन: खजाने की ओर मुड़े तथा उन्होंने फिर पाँच मोती उठाकर अपने पास रख लिए। अब तो खजांची के मन में राजपुरोहित के प्रति पूर्व में जो श्रद्धा थी वह क्षीण होने लगी। तीसरे दिन जब पुन: वही घटना घटी तो उसके धैर्य का बाँध टूट गया। उसका संदेह इस विश्वास में बदल गया कि राजपुरोहित की ‍नीयत निश्चित ही खराब हो गई है।


उसने राजा को इस घटना की विस्तृत जानकारी दी। राजा को इस सूचना से बड़ा आघात पहुँचा। उनके मन में राजपुरोहित के प्रति आदरभाव की जो प्रतिमा पहले से प्रतिष्ठित थी, वह चूर-चूर होकर बिखर गई। चौथे दिन जब राजपुरोहित सभा में आए तो राजा पहले की तरह न सिंहासन से उठे और न उन्होंने राजपुरोहित का अभिवादन किया, यहाँ तक कि राजा ने उनकी ओर देखा तक नहीं। राजपुरोहित तत्काल समझ गए कि अब योजना रंग ला रही है।


 उन्होंने जिस उद्देश्य से मोती उठाए थे, वह उद्देश्य अब पूरा होता नजर आने लगा था। यही सोचकर राजपुरोहित चुपचाप अपने आसन पर बैठ गए। राजसभा की कार्यवाही पूरी होने के बाद जब अन्य दरबारियों की भाँति राजपुरोहित भी उठकर अपने घर जाने लगे तो राजा ने उन्हें कुछ देर रुकने का आदेश दिया। सभी सभासदों के चले जाने के बाद राजा ने उनसे पूछा - 'सुना है आपने खजाने में कुछ गड़बड़ी की है।'


इस प्रश्न पर जब राजपुरोहित चुप रहे तो राजा का आक्रोश और बढ़ा। इस बार वे कुछ ऊँची आवाज में बोले -'क्या आपने खजाने से कुछ मोती उठाए हैं?'


राजपुरोहित ने मोती उठाने की बात को स्वीकार किया। राजा का अगला प्रश्न था - 'आपने कितेने मोती उठाए और कितनी बार?' राजा ने पुन: पूछा - 'वे मोती कहाँ हैं?'


राजपुरोहित ने एक पुड़िया जेब से निकाली और राजा के सामने रख दी जिसमें कुल पंद्रह मोती थे। राजा के मन में आक्रोश, दुख और आश्चर्य के भाव एक साथ उभर आए।


राजा बोले - 'राजपुरोहित जी आपने ऐसा गलत काम क्यों किया? क्या आपको अपने पद की गरिमा का लेशमात्र भी ध्यान नहीं रहा। ऐसा करते समय क्या आपको लज्जा नहीं आई? आपने ऐसा करके अपने जीवनभर की प्रतिष्ठा खो दी। आप कुछ तो बोलिए,


आपने ऐसा क्यों किया?


राजा की अकुलाहट और उत्सुकता देखकर राजपुरोहित ने राजा को पूरी बात विस्तार से बताई तथा प्रसन्नता प्रकट करते हुए राजा से कहा - 'राजन् केवल इस बात की परीक्षा लेने हेतु कि ज्ञान और चरित्र में कौन बड़ा है, मैंने आपके खजाने से मोती उठाए थे अब मैं निर्विकल्प हो गया हूँ। यही नहीं आज चरित्र के प्रति मेरी आस्था पहले की अपेक्षा और अधिक बढ़ गई है।


आपसे और आपकी प्रजा से अभी तक मुझे जो प्यार और सम्मान मिला है। वह सब ज्ञान के कारण नहीं ‍अपितु चरित्र के ही कारण था। आपके खजाने में सबसे अधिक बहुमू्ल्य वस्तु सोना-चाँदी या हीरा-मोती नहीं बल्कि चरित्र है।


अत: मैं चाहता हूँ कि आप अपने राज्य में चरित्र संपन्न लोगों को अधिकाधिक प्रोत्साहन दें ताकि चरित्र का मूल्य उत्तरोत्तर बढ़ता रहे। कहा जाता है -


धन गया,कुछ नहीं गया,

स्वास्थ्‍य गया,कुछ गया!

चरित्र गया तो सब कुछ गया..!!


गुरुवार, 26 दिसंबर 2024

आखिर क्या होते है संस्कार? ..


संस्कार क्या है?



एक राजा के पास सुन्दर घोड़ी थी। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये और घोड़ी राजा के लिए पूरी वफादार थी| कुछ दिनों के बाद इस घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया| बच्चा काना पैदा हुआ, पर शरीर हष्ट पुष्ट व सुडौल था।


बच्चा बड़ा हुआ| बच्चे ने मां से पूछा- मां मैं बहुत बलवान हूँ, पर काना हूँ.... यह कैसे हो गया| इस पर घोड़ी बोली: "बेटा जब में गर्भवती थी| तू पेट में था तब राजा ने मेरे ऊपर सवारी करते समय मुझे एक कोड़ा मार दिया, जिसके कारण तू काना हो गया।


यह बात सुनकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और मां से बोला: "मां मैं इसका बदला लूंगा।"


मां ने कहा "राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है, तू जो स्वस्थ है....सुन्दर है, उसी के पोषण से तो है|  यदि राजा को एक बार गुस्सा आ गया तो इसका अर्थ यह नहीं है, कि हम उसे क्षति पहुचाये"| पर उस बच्चे के समझ में कुछ नहीं आया, उसने मन ही मन राजा से बदला लेने की सोच ली।


एक दिन यह मौका घोड़े को मिल गया|    राजा उसे युद्व पर ले गया । युद्व लड़ते-लड़ते राजा एक जगह घायल हो गया, घोड़ा उसे तुरन्त उठाकर वापस महल ले आया।


इस पर घोड़े को ताज्जुब हुआ और मां से पूछा: "मां आज राजा से बदला लेने का अच्छा मौका था, पर युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही ले पाया, मन ने गवारा नहीं किया....इस पर घोडी हंस कर बोली: बेटा तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा है ही नहीं, तू जानकर तो धोखा दे ही नहीं सकता है।"


"तुझ से नमक हरामी हो नहीं सकती, क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है।"


यह सत्य है कि जैसे हमारे संस्कार होते है, वैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है, हमारे पारिवारिक-संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाते हैं, माता-पिता जिस संस्कार के होते हैं, उनके बच्चे भी उसी संस्कारों को लेकर पैदा होते हैं।


*हमारे कर्म ही 'संस्‍कार' बनते हैं और संस्कार ही प्रारब्धों का रूप लेते हैं! यदि हम कर्मों को सही व बेहतर दिशा दे दें, तो संस्कार अच्छे बनेगें और संस्कार अच्छे बनेंगे तो जो प्रारब्ध का फल बनेगा, वह मीठा व स्वादिष्ट होगा।

आखिर क्या होते है संस्कार? .. 

संस्कार का मतलब है शुद्धिकरण| संस्कारों का मकसद व्यक्ति को उसके समुदाय का योग्य सदस्य बनाना और उसके शरीर, मन, और मस्तिष्क को पवित्र करना है| संस्कारों के ज़रिए व्यक्ति में अच्छे गुणों का विकास होता है| संस्कारों के दो रूप होते हैं - आंतरिक और बाहरी| बाहरी रूप को रीति-रिवाज कहते हैं| आंतरिक रूप हमारी जीवन-चर्या है| 

बुधवार, 25 दिसंबर 2024

जब बिल्ली रास्ता काटे तो ये करें......

 

जब बिल्ली रास्ता काटे तो ये करें.


▪️किसी कार्य पर जाते समय यदि बिल्ली रास्ता काट जाए, तो यथासम्भव तुरंत वापिस घर आ जाएँ, एक गिलास जल पीजिए, जूते-चप्पल आदि उतार कर कुछ देर विश्राम कीजिए, फिर पुन: कार्य हेतु प्रस्थान करें। दोष परिहार होगा।


▪️बिल्ली के रास्ता काटते समय यदि वापिस आना सम्भव न हो, तो वहीं पर रूक जाएँ तथा कुछ व्यक्तियों को निकल जाने के पश्चात ही गमन करें। ऐसा करने से दोष परिहार हो जाता है।


▪️ कभी-कभी क्या होता है कि जब बिल्ली रास्ता काटती है, तो वह पूरा रास्ता नहीं काटती, कुछ भाग छूट जाता है, ऐसी स्थिति में बिल्ली ने जिस तरफ से रास्ता नहीं काटा है अथवा उसके द्वारा कुछ रास्ता छूट गया है, तो आप उसी रास्ते से निकल जाएँ, जो बिल्ली द्वारा छूट गया है, इससे भी दोष परिहार होगा।


▪️कुछ विद्वानों का कथन है कि बिल्ली का बाएँ तरफ से रास्ता काटना अशुभ नहीं होता है। क्योंकि जैसे ही बिल्ली दायीं ओर से रास्ता काटेगी तो सामने से आने वाला व्यक्ति बायीं ओर हो जाएगा, ऐसा करने से किसी प्रकार का अशुभ फल प्राप्त नहीं होगा।


▪️इसलिए बिल्ली जब दायीं ओर से रास्ता काटे, तो सामने से किसी अन्य व्यक्ति के निकलने का इंतजार करना चाहिए, न कि अपनी बायीं या दायीं ओर से।





कुछ ये उपाय भी किए जा सकते हैं  

अपने इष्टदेव या हनुमान जी को प्रणाम करें| 

सूर्य नमस्कार करें|

'रां राहवे नम:' मंत्र बोलें|
 
अपने से पहले किसी और के निकलने का इंतज़ार करें|
 
अगर आप अकेले या गाड़ी से जा रहे हैं, तो दो मिनट रुकें|
 
अगर आप सुमसान रास्ते पर हैं, तो अपने इष्ट देवता या गुरू, माता-पिता में से किसी का भी स्मरण करें|

अगर किसी राहगीर ने उस बिल्ली को नहीं देखा है, तो दुर्गा सप्तशी में दिए सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्मंत्र का नौ बार स्मरण करें|

Impotant

रोचक कहानी संपत्ति बड़ी या संस्कार

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