शनिवार, 30 दिसंबर 2023

भगवान श्री गणेश को गज का ही शीश इसलिए लगाया गया क्यूंकि...........

श्री गणपतये नमः 

श्री गणपतये नमः 

ॐ गं गणपतये नमः 


गज और असुर के संयोग से एक असुर जन्मा था-गजासुर| उसका मुख गज जैसा होने के कारण उसे गजासुर कहा जाने लगा| गजासुर शिवजी का बड़ा भक्त था और शिवजी के बिना अपनी कल्पना ही नहीं करता था| उसकी भक्ति से भोले भंडारी गजासुर पर प्रसन्न हो गए वरदान मांगने को कहा| गजासुर ने कहा- प्रभु आपकी आराधना में कीट-पक्षियों द्वारा होने वाले विघ्न से मुक्ति चाहिए| इसलिए मेरे शरीर से हमेशा तेज अग्नि निकलती रहे जिससे कोई पास न आए और मैं निर्विघ्न आपकी अराधना करता रहूं| महादेव ने गजासुरो को उसका मनचाहा वरदान दे दिया| गजासुर फिर से शिवजी की साधना में लीन हो गया| हजारो साल के घोर तप से शिवजी फिर प्रकट हुए और कहा- तुम्हारे तप से प्रसन्न होकर मैंने मनचाहा वरदान दिया था| मैं फिर से प्रसन्न हूं बोलो अब क्या मांगते हो? गजासुर कुछ इच्छा लेकर तो तप कर नहीं रहा था,उसे तो शिव आराधना के सिवा और कोई कामपसंद नहीं था लेकिन प्रभु ने कहा कि वरदान मांगो तो वह सोचने लगा

गजासुर ने कहा- वैसे तो मैंने कुछ इच्छा रखकर तप नहीं किया लेकिन आप कुछ देना चाहते हैं तो आप कैलाश छोड़कर मेरे उदर (पेट) में ही निवास करें| भोले भंडारी गजासुर के पेट में समा गए| माता पार्वती ने उन्हें खोजना शुरू किया लेकिन वह कहीं मिले ही नहीं| उन्होंने विष्णुजी का स्मरण कर शिवजी का पता लगाने को कहा| श्रीहरि ने कहा- बहन आप दुखी न हों, भोले भंडारी से कोई कुछ भी मांग ले, दे देते हैं| वरदान स्वरूप वह गजासुर के उदर में वास कर रहे हैं| श्रीहरि ने एक लीला की, उन्होंने नंदी बैल को नृत्य का प्रशिक्षण दिया और फिर उसे खूब सजाने के बाद गजासुर के सामने जाकर नाचने को कहा| श्रीहरि स्वयं एक ग्वाले के रूप में आए औऱ बांसुरी बजाने लगे|  बांसुरी की धुन पर नंदी ने ऐसा सुंदर नृत्य किया कि गजासुर बहुत प्रसन्न हो गया|उसने ग्वाला वेशधारी श्रीहरि से कहा- मैं तुम पर प्रसन्न हूं, इतने साल की साधना से मुझमें वैराग्य आ गया था, तुम दोनों ने मेरा मनोरंजन किया है| कोई वरदान मांग लो|

श्रीहरि ने कहा- आप तो परम शिवभक्त हैं, शिवजी की कृपा से ऐसी कोई चीज नहीं जो आप हमें न दे सकें, किंतु मांगते हुए संकोच होता है कि कहीं आप मना न कर दें|श्रीहरि की तारीफ से गजासुर स्वयं को ईश्वरतुल्य ही समझने लगा था| उसने कहा- तुम मुझे साक्षात शिव समझ सकते हो| मेरे लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं| तुम्हें मनचाहा वरदान देने का वचन देता हूं| श्रीहरि ने फिर कहा- आप अपने वचन से पीछेतो न हटेंगे, गजासुर ने धर्म को साक्षी रखकर हामी भरी तो श्रीहरि ने उससे शिवजी को अपने उदर से मुक्त करने का वरदान मांगा| गजासुर वचनबद्ध था, वह समझ गया कि उसके पेट में बसे शिवजी का रहस्य जानने वाला यह रहस्य यह कोई साधारण ग्वाला नहीं हैं,जरूर स्वयं भगवान विष्णु आए हैं| उसने शिवजी को मुक्त किया और शिवजी से एकआखिरी वरदान मांगा| उसने कहा- प्रभु आपको उदर में लेने के पीछे किसी का अहित करने की मंशा नहीं थी|

मैं तो बस इतना चाहता था कि आपके साथ मुझे भी स्मरण किया जाए| शरीर से आपका त्याग करने के बाद जीवन का कोई मोल नहीं रहा| इसलिए प्रभु मुझे वरदान दीजिए कि मेरे शरीर का कोई अंश हमेशा आपके साथ पूजित हो| शिवजी ने उसे वह वरदान दे दिया| श्रीहरि ने कहा- गजासुर तुम्हारी शिवभक्ति अद्भुत है, शिव आराधना में लगे रहो| समय आने पर तुम्हें ऐसा सम्मान मिलेगा जिसकी तुमने कल्पना भी नहीं की होगी| जब गणेशजी का शीश धड़ से अलग हुआ तो गजासुर के शीश को ही श्रीहरि काट लाए और गणपति के धड़ से जोड़कर जीवित किया था| इस तरह वह शिवजी के प्रिय पुत्र के रूप में प्रथम आराध्य हो गया।


क्या आप जानते हैं, क्यों भगवान गणेश जी को गज का ही शीश लगाया गया? और किसी पशु या देव या मानव का क्यों नहीं| 

गज का ही शीश क्यों लगाया गया भगवान श्री गणेश को?

भगवान श्री गणेश को गज का ही शीश इसलिए लगाया गया क्यूंकि

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

लक्ष्मी जी के इन 12 नाम जाप अत्यंत लाभकारी है ,ऐसा करने से वैभव और यश की प्राप्ति होगी| कैसे करें माँ लक्ष्मी को प्रसन्न

 कैसे करें माँ लक्ष्मी को प्रसन्न 

माता लक्ष्मी के 12 नाम,


हम अपनी रोज की ज़िंदगी से जुड़े हुए कामो से समय निकल के यदि ध्यान दे, तो हम घर ,परिवार, समाज, देश  को एक नई दिशा दे सकते है | हम रोज़ पूजा करते ही है | यदि इसी पूजा मे थोड़ी से चीज़ों को जोड़ दे तो हम अपनी पूजा कई गुना बड़ा  सकते हैं |  

लक्ष्मी जी के इन 12 नाम और मंत्र का जाप करना अत्यंत लाभकारी है| मान्यता है कि ऐसा करने से वैभव और यश की प्राप्ति होगी|

लक्ष्मी द्वादशनाम स्तोत्रम् में माता लक्ष्मी को 12 नामों से संबोधित किया गया है. इन 12 नामों का जाप करने से भक्त को स्थिर लक्ष्मी यानी धन, संतान सुख मिल सकता है और दरिद्रता दूर होती है|


ये हैं माता लक्ष्मी के 12 नाम - 

1-ईश्वरी 

2-कमला  

3-लक्ष्मी 

4-चला  


5-भूति   

6-हरिप्रिया 

7-पद्मा 

8-पद्मालया 

9-संपद् 

10-रमा 

11-श्री 

12-पद्मधारिणी 


माता लक्ष्मी को समृद्धि की देवी कहते हैं| माना जाता है कि मां नारायणी की कृपा से सारी परेशानियों का निवारण हो जाता है| घर में पैसे की कमी नहीं होती और सुख शांति भी बनी रहती है| माता लक्ष्मी पूजन विधि में प्रसाद, व्रत, दान-पुण्य के अलावा लक्ष्मी जी के 12 नामों का उच्चारण करने से देवी प्रसन्न होती हैं और भक्तजनों को आशीर्वाद देती हैं| 


बुधवार, 20 दिसंबर 2023

भगवान शिव को क्यों कहा जाता है अर्धनारीश्वर,


 

अर्धनारीश्वर अवतार की कथा


श्री हर (भगवान शिव)के भी कई अंशावतार हैं, उन्‍होंने भी नारी स्वरूप धरा था, जिसे अर्धनारीश्वर कहा गया| इसका अर्थ होता है-आधी स्त्री और आधा पुरुष| शिवजी के इस स्वरूप के आधे भाग में पुरुष और आधे भाग में स्त्री रूपी उमा यानी शक्ति नजर आईं| मान्यताएं हैं कि इसी रूप के फलस्‍वरूप संसार में सभी प्राणियों में नर-मादा हुए|

 

शिव स्तुति में आये इस भृंगी नाम को आप सब ने जरुर ही सुना होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार ये एक ऋषि थे जो महादेव के परम भक्त थे किन्तु इनकी भक्ति कुछ ज्यादा ही कट्टर किस्म की थी। कट्टर से तात्पर्य है कि ये भगवान शिव की तो आराधना करते थे किन्तु बाकि भक्तो की भांति माता पार्वती को नहीं पूजते थे।

उनकी भक्ति पवित्र और अदम्य थी लेकिन वो माता पार्वती जी को हमेशा ही शिव से अलग समझते थे या फिर ऐसा भी कह सकते है कि वो माता को कुछ समझते ही नही थे। वैसे ये कोई उनका घमंड नही अपितु शिव और केवल शिव में आसक्ति थी जिसमे उन्हें शिव के आलावा कुछ और नजर ही नही आता था। एक बार तो ऐसा हुआ की वो कैलाश पर भगवान शिव की परिक्रमा करने गए लेकिन वो पार्वती की परिक्रमा नही करना चाहते थे।

ऋषि के इस कृत्य पर माता पार्वती ने ऐतराज प्रकट किया और कहा कि हम दो जिस्म एक जान है तुम ऐसा नही कर सकते। पर शिव भक्ति की कट्टरता देखिये भृंगी ऋषि ने पार्वती जी को अनसुना कर दिया और भगवान शिव की परिक्रमा लगाने बढे। किन्तु ऐसा देखकर माता पार्वती शिव से सट कर बैठ गई। इस किस्से में और नया मोड़ तब आता है जब भृंगी ने सर्प का रूप धरा और दोनों के बीच से होते हुए शिव की परिक्रमा देनी चाही।

तब भगवान शिव ने माता पार्वती का साथ दिया और संसार में महादेव के अर्धनारीश्वर रूप का जन्म हुआ। अब भृंगी ऋषि क्या करते किन्तु गुस्से में आकर उन्होंने चूहे का रूप धारण किया और शिव और पार्वती को बीच से कुतरने लगे।

ऋषि के इस कृत्य पर आदिशक्ति को क्रोध आया और उन्होंने भृंगी ऋषि को श्राप दिया कि जो शरीर तुम्हे अपनी माँ से मिला है वो तत्काल प्रभाव से तुम्हारी देह छोड़ देगा।

हमारी तंत्र साधना कहती है कि मनुष्य को अपने शरीर में हड्डिया और मांसपेशिया पिता की देन होती है जबकि खून और मांस माता की देन होते है l

श्राप के तुरंत प्रभाव से भृंगी ऋषि के शरीर से खून और मांस गिर गया। भृंगी निढाल होकर जमीन पर गिर पड़े और वो खड़े भी होने की भी क्षमता खो चुके थे l तब उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने माँ पार्वती से अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी।

हालाँकि तब पार्वती ने द्रवित होकर अपना श्राप वापस लेना चाहा किन्तु अपराध बोध से भृंगी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया l ऋषि को खड़ा रहने के लिए सहारे स्वरुप एक और (तीसरा) पैर प्रदान किया गया जिसके सहारे वो चल और खड़े हो सके तो 

भक्त भृंगी के कारण ऐसे हुआ था महादेव के अर्धनारीश्वर रूप का उदय।

बुधवार, 13 दिसंबर 2023

स्वयं सिद्ध गणपति जी के 12 नामों के जाप से घर मे आता है धन वैभव, रिद्धि सिद्धि, सुख समृद्धि

 

भगवान गणेश के इन बारह नामों की जप महिमा 

गणपति जी के 12 नाम



प्रथमं वक्रतुण्ड च एकदन्तं द्वितीयकम्, तृतीयं कृष्णपिड्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्।।

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च, सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम्।।

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्, एकादशं गणपतिं द्वादर्श तु गजाननम्।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः, न च विध्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम्।।


जो मनुष्य प्रतिदिन भगवान गणेश के इन बारह नामों का जप करता है, उसके सभी विघ्न (परेशानियां) खत्म हो जाती हैं। 

ॐ श्री वक्रतुुण्डाये नमः

ॐ श्री  एकदन्ताये नमः 

ॐ श्री  कृष्णपिड्गाक्षाये नमः   

ॐ श्री  गजवक्तव्याये नमः 

ॐ श्री लम्बोदराये नमः  

ॐ श्री विकटमेवाये नमः  

ॐ श्री  विघ्नराजेन्द्राये नमः   

ॐ श्री धूमवर्णाये नमः 

ॐ श्री भालचन्द्राये नमः   

ॐ श्री विनयकाये नमः  

ॐ श्री गणपतये नमः   

ॐ श्री गजाजनाये नमः  


श्लोक

विद्यार्थी लभते विद्यां, धनार्थी लभते धनम्।

पुत्रार्थी लभते पुत्रान्, मोक्षार्थी लभते गतिम्।।


अर्थात: भगवान गणेश के इन बारह नामों का पाठ करने से विद्या चाहने वाले को विद्या, धन चाहने वाले को धन, पुत्र चाहने वाले को पुत्र और मोक्ष की इच्छा रखने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।


1. विद्या की प्राप्ति

भगवान गणेश को बुद्धि का देवता माना जाता है। अच्छी बुद्धि और विद्या के लिए श्रीगणेश की पूजा-अर्चना की जाती है। श्रीगणेश-अंक के अनुसार, जिस भी मनुष्य को अच्छी विद्या पाने की इच्छा हो, उसे भगवान गणेश के इन 12 नामों का पाठ करना चाहिए। नियमित रूप से इनका जप करने से भगवान गणेश की कृपा हमेशा बनी रहती है और मनुष्य की हर मनोकामना पूरी होती है।


2. धन की प्राप्ति

भगवान गणेश को सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। जिस भी मनुष्य को धन-संपत्ति पाने की इच्छा हो, उसे पूरी श्रद्धा के साथ भगवान गणेश के इन बारह नामों का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से घर से दरिद्रता कम होती है और धन-धान्य में वृद्धि होती है।


3. संतान की प्राप्ति

भगवान गणेश के इन बारह नामों को चमत्कारी माना जाता है। इनके जप से मनुष्य की हर मनोकामना जरूर ही पूरी होती है। संतान चाहने वाले दंपत्ति को रोज सुबह और शाम इनका पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से उनकी संतान पाने की इच्छा पूरी होती है।


4. मोक्ष की प्राप्ति

भगवान गणेश प्रथम पूज्य माने जाते है। किसी भी काम की शुरुआत में सबसे पहले उनका पूजन किया जाता है। भगवान गणेश की आराधना करने से मनुष्य को अपने पापों से मुक्ति मिलती हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान गणेश के इन बारह नामों का पाठ करने से मनुष्य को धरती पर ही स्वर्ग के समान सुख मिलते है।


क्या होता है भगवन गणेश के १२ नामों को प्रतिदिन लेने से --- 

प्रतिदिन गणेश जी के इन 12 नामों को लेने से होते है चमत्कार 

स्वयं सिद्ध है ये गणपति जी के 12 नाम 

प्रतिदिन इन 12 नामों के जाप से घर मे आता है धन वैभव , रिद्धि सिद्धि ,सुख समृद्धि

भगवान गणेश के इन 12 नामों की जप महिमा 

रोज़ इन १२ नामो के जप से मिट जाते है दुःख दर्द 

भाग्य खोलने के लिए प्रतिदिन करें इन १२ नामों जप 

देखें चमत्कार ३० दिनों मे इन नामों को रोज़ लेकर 

जानियें गणपति जी के 12 नामों की महिमा 

गणेश जी के 12 अवतारों के बारे मे जानिए 


मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

बहुत प्रभावशाली है हनुमान जी ये 12 नाम


हनुमान जी के 12 नाम


आज हम आपको हनुमान जी के उन 12 दिव्य नामों का रहस्य बताने जा रहे हैं जिनके जाप से आपके सारे बिगड़े काम बन सकते हैं।

हनुमान जी के इन 12 नामों में छिपा है आपकी बारह समस्याओं का हल


1 ॐ श्री हनुमते नमः

कथा: एक बार जब हनुमान जी बाल अवस्था में सूर्य देव को फल समझकर खाने के लिए उनकी तरफ बढ़ने लगे तब इंद्र देव ने हनुमान जी को रोकने के लिए अपने वज्र से उन पर प्रहार किया था जिसके बाद व्रज के प्रहार से उनकी ठुड्डी टेड़ी हो गई थी। ठुड्डी को हनु कहा जाता है। तभी से उनका नाम हनुमान पड़ गया। 


2 ॐ सीताशोकविनाशनाय नमः। 

कथा: इस नाम की रोचक कथा यह है कि जब समुद्र को लांघ हनुमान जी माता सीता (माता सीता की बहनों की रोचक कथा) के पास पहुंचे थे तब उन्होंने छोटा सा आकार धर पेड़ की आड़ में खुद को छिपा लिया था। उन्होंने माता सीता को श्री राम से बिछड़ने के शोक में द्रवित देखा। जब माता सीता के समीप कोई भी रावण के रक्षाओं में से नहीं था तब समय का लाभ उठाते हुए उन्होंने माता सीता को अपना परिचय देते हुए खुद को राम दूत बताया जिसके बाद माता सीता का सारा शोक दूर हो गया। इसी वजह से हनुमान जी सीताशोकविनाशन कहलाए। 


3 ॐ लक्ष्मणप्राणदात्रे नमः।

कथा: रामायण के एक खंड में इस घटना का वर्णन मिलता है कि लक्ष्मण जी और मेघनाथ के युद्ध में जब मेघनाथ ने छल से लक्ष्मण जी को आहत कर मूर्छित कर दिया था तब हनुमान जी उनकी रक्षा हेतु संजीवनी बूटी लेकर आए थे जिससे लक्ष्मण जी की जान बचना संभव हो सकता था। इसलिए हनुमान जी को लक्ष्मण प्राणदाता के नाम से भी जाना जाता है। 


4 ॐ दशग्रीवस्य दर्पाय नमः।      

कथा: दशग्रीव का मतलब होता है रावण और दर्पहा का अर्थ है घमंड तोड़ने वाला। ये तो समूचा जगत जानता है कि महाबली हनुमान ने किस प्रकार अनेकों बार रावण का अहंकार चूर चूर किया था। इसी कारण से उनका एक नाम दशग्रीवदर्पहा पड़ा। 


ॐ अञ्जनी सुताय नमः। 

कथा: हनुमान जी ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को प्रदोषकाल में जन्म लिया था। इसी कारण से वह अंजनीसुत कहलाए।


6 ॐ वायुपुत्राय नमः।

कथा: बजरंगबली का जन्म वायु देव के आशीर्वाद से हुआ था और पवन देव उनके मानस पुत्र भी हैं। इसलिए हनुमान जी का एक नाम वायुपुत्र या पवन पुत्र भी है। 


7 ॐ महाबलाय नमः।

कथा: हनुमान जी अत्यंत बलशाली हैं। ऐसा माना जाता है कि बालि, रावण (रावण ने क्यों रचा अपनी मृत्यु का षड्यंत्र), भीम, एरावत, इंद्र आदि सभी का बल मिलकर भी हनुमान जी के बल से इनकी तुलना संभव नहीं। हनुमान जी के बल के कारण ही स्वर्ण लंका क्षण भर में राख का ढेर बन गई थी। इसी कारण से हनुमान जी को महाबली भी कहा जाता है। 


8 ॐ रामेष्ठाय नमः।

कथा: हनुमान जी भगवान श्री राम के प्रिय माने जाते हैं। उनके रोम रोम में राम बसे हैं। राम काज में हनुमान जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा था। इसी कारण से उनका एक नाम रामेष्ट भी पड़ा। 


9 ॐ फाल्गुण सखाय नमः।

कथा: हनुमान जी को अर्जुन का मित्र माना जाता है। इसके पीछे का तर्क यह है कि फाल्गुन का अर्थ होता है अर्जुन और सखा का अर्थ होता है मित्र। यानी कि वो जो अर्जुन के मित्र हैं। इसके अलावा, महाभारत और भगवद गीता दोनों ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि हनुमान जी ने महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन के रथ पर स्थापित होकर उनकी रक्षा की थी। 


10 ॐ पिंगाक्षाय नमः।  

कथा: पिंगाक्ष का अर्थ होता है आंखों में हल्के लाल और पीले रंग की परत बनना। हनुमान जी के नेत्रों में भी ऐसी परत बनने का उल्लेख रामायण ग्रंथ में मिलता है। इसी कारण से हनुमान जी का एक नाम पिंगाक्ष भी है। 


11 ॐ अमितविक्रमाय नमः। 

कथा: हनुमान जी का एक नाम अमितविक्रम भी है। अमित का अर्थ है अधिक और विक्रम का अर्थ होता है पराक्रमी। हनुमान जी भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं। ऐसे में उनके अंदर अथाह बल होना स्वाभाविक है। हनुमान जी ने अपने बल से ऐसे अचंभित कर देने वाले कार्य किये हैं जो देवताओं के बल के भी बाहर है।


12 ॐ उदधिक्रमणाय नमः। 

कथा: उदधिक्रमण का मतलब होता है समुद्र को लांघने वाला। हनुमान जी ने सीता माता की खोज में समुद्र को लांघा था इसलिए उनका एक नाम उदधिक्रमण भी है। 


आज हम आपको हनुमान जी के उन 12 दिव्य नामों का रहस्य बताने जा रहे हैं जिनके जाप से आपके सारे बिगड़े काम बन सकते हैं।


हनुमान जी के द्वादश नाम कौन से हैं

आनंद रामायण में इनके विशेष बारह नाम बताए गए हैं- हनुमान, अंजनीसुत, वायुपुत्र, महाबल, रामेष्ट, फाल्गुनसखा, पिंगाक्ष, अमितविक्रम, उदधिक्रमण, सीतोशोकविनाशन, लक्ष्मणप्राणदाता, दशग्रीवदर्पहा  हर नाम की अलग अलग महिमा है और हर नाम अलग अलग तरीके से प्रयोग किया जाता है.


बहुत प्रभावशाली है हनुमान जी ये 12 नाम 

सोमवार, 11 दिसंबर 2023

भगवन शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों की संक्षेप मे जानकारी

 

12 ज्योतिर्लिंग


भारत में अलग-अलग जगहों पर उनके 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं, जिनके दर्शनों से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, दुख दूर होते हैं, धन-संपदा, वैभव, प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति प्रतिदिन इन 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम जपता है, वह सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। मनोकामना की पूर्ति के लिए इन ज्योतिर्लिंगों के नामों का जाप किया जाता है।


सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

उज्जयिन्यां महाकालमोंकारंममलेश्वरम्॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्।

सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।

हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥


1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग: इसे पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थापित है। शिवपुराण में बताया गया है कि दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा को क्षय रोग का श्राप दिया था, तब इससे मुक्ति के लिए चंद्रमा यहां पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया था। ऐसी भी मान्यता है कि चंद्रदेव ने इस शिव लिंग की स्थापना की थी।


2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैल पर्वत पर स्थापित है। इस पर्वत को कैलाश के समान दर्जा प्राप्त है।


3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थापित है। यह एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां की भस्म आरती काफी प्रसिद्ध है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अकाल मृत्यु से मुक्ति पाने के लिए यहां भगवान शिव की पूजा करने से लाभ मिलता है।


4. ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के ॐकारेश्वर में स्थापित है, जो नर्मदा तट पर स्थित है।


5. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग जिस स्थान पर स्थापित है, वह वैद्यनाथ धाम के नाम से दुनिया भर में प्रसिद्ध है।


6. भीमशंकर ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सह्याद्रि नामक पर्वत पर भीमा नदी के किनारे स्थापित है। यह ज्योतिर्लिंग मोटेश्वर महादेव के नाम से भी प्रसिद्ध है।


7. रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथपुरम में स्थापित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका विजय से पूर्व यहां पर शिवलिंग स्थापित किया था  और भगवान शिव की अराधना की थी। इस वजह से इसे रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कहा गया। यह चार धामों में से एक है।


8. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित है। भगवान शिव का एक नाम नागेश्वर भी है यानि नागों के ईश्वर


9. विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित है, इस नगर का पौराणिक नाम काशी है, इसलिए यह ज्योतिर्लिंग को काशी विश्वनाथ के नाम से भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि भगवान शिव काशी के राजा हैं, और वे यहां के लोगों की रक्षा करते हैं।


10. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में गोदावरी नदी के पास स्थापित है। कहा जाता है कि गौतम ऋषि और गोदावरी नदी ने भगवान शिव से यहां पर निवास करने का निवेदन किया था, जिसके परिणामस्वरूप भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में स्थापित हो गए।


11. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ सबसे ऊंचाई पर स्थित है, यह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में है। केदारनाथ के दर्शनों के लिए बैशाखी बाद गर्मियों में इस मंदिर को खोला जाता है, दीपावली के बाद पड़वा के दिन मंदिर के द्वार बंद होते हैं।


12. घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के पास वेसल गांव में स्थापित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है।

भगवन शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों की संक्षेप मे जानकारी 

शिव जी के 12 नामों को प्रतिदिन लेने से सारी मनोकामना पूरी होती है 


शनिवार, 9 दिसंबर 2023

जानिये क्या है नैवेद्य

 नैवेद्य की विधि

जानिये क्या है नैवेद्य


यह लेख स्कंद पुराण के वैष्णव-खंड केअंतर्गत है


ब्रह्मा  ने कहा -हे भगवान, मुझे नैवेद्य (भोजन-अर्पण) की विधि बताएं जैसा कि वास्तव में किया जाता है। पूरी तरह से बताएं कि कितने प्रकार का पका हुआ भोजन वांछित है 

श्री भगवान ने कहा - अच्छा पूछा तुमने, हे प्रिय! यह मुझे बेहद पसंद है. मैं भोजन, पेय आदि और भोजन की (किस्मों) के बारे में भी पूरी तरह से बताऊंगा।

पहली चीज है सोने की थाली. यदि यह उपलब्ध न हो तो चांदी का उपयोग किया जा सकता है। यदि वह उपलब्ध न हो तो बड़े और सुंदर पलाश के थाल का उपयोग करना चाहिए।

हे निष्पाप, सैकड़ों ककोले बनाकर पात्र में चारों ओर रखना चाहिए। इसके बीच में भोजन अवश्य रखें। वे सात्विक होने चाहिए और उनमें विभिन्न प्रकार के फल होने चाहिए। पात्र में चंद्रमा के समान (रंग में) दूध की खीर होनी चाहिए और उसमें पर्याप्त मात्रा में मीठा मिला  होना चाहिए। चावल को सफेद  दिखना चाहिए। मुद्गा दाल शानदार और चमकदार जैसी होनी चाहिए।


बीच-बीच में अलग-अलग तरह के अचार और मसाले जरूर रखने चाहिए|  भोजन सामग्री को तीन पंक्तियों में व्यवस्थित करना चाहिए। नींबू के रस के साथ फलों और जड़ों के साथ विभिन्न प्रकार के भोजन अवश्य होने चाहिए। मुझे दिए जाने वाले भोजन में ऐसे अनेक प्रकार के भोज्य प्रदार्थ अवश्य हों। अंगूर को अच्छे आम और फलो  के साथ मिलाना चाहिए । कालीमिर्च, पिप्पली, अदरक और इलायची मिला लेनी चाहिए|  उन्हें उबाला जाए और मेरे भोजन (नैवेद्य) के लिए अनेकोकी संख्या  बनाई जाएं।


सैकड़ों ककोलों  के साथ प्रलेहन (शोरबा या चाटने के लिए सामग्री) बनाना चाहिए। अनेक पुष्पों द्वारा उन्हें सुगन्धित करना चाहिए। मार्गशीर्ष माह में वे मुझे बहुत प्रिय हैं।


मांडक (एक पतली चपटी गोलाकार केक जैसी डिश ) सुंदर, गोलाकार, शून्य के समान सर्वत्र सम और सममित, साथ ही उसमें चीनी मिला हुआ उबला हुआ दूध रखना चाहिए।


मेरे उस भोजन में (मिश्रित) गाय का दूध, शहद के रंग वाला, मधुर सुगंध वाला घी स्नेहपूर्वक और भक्तिपूर्वक डालना चाहिए, हे प्रिय, वह घी जो चमकदार ककोला (गेहूं के आटे के बर्तन) में रखा जाता है।  यह इलायची से चमक रहा होगा. उसे पुरिका (खाद्य तेल या घी में तले हुए पतले पैन-केक) को (प्रत्येक में पर्याप्त मात्रा में) हींग के साथ मिलाकर सौ छेद वाले और वेष्टिका (चावल, चने आदि के पिसे हुए आटे से बनी नमकीन) बनानी चाहिए । कई कुंडलियों में और तेलों में तला हुआ)। उसे अपूप (छोटी पाई) और विभिन्न प्रकार के दूध से बने व्यंजन भी तैयार करने चाहिए ।


इन मीठे पकवान को गहनों और मोतियों या मालती के फूलों आदि की तरह एक साथ पिरोया जाना चाहिए। इसमें परपाटा और वरपाटा (आटे से बना गोलाकार केक जैसा सामान और तेल में तलने के लिए धूप में सुखाया जाना चाहिए) यानी पापड़ और वरपाटा अन्य सामान हैं इसी तरह कुंडल, शंकु, गोलाकार आदि में तैयार किया जाता है, आटे या सब्जियों को सुखाकर बनाया जाता है - सभी को तला जाता है) माशा दाल या कुष्मांडा (ऐश लौकी) से खूबसूरती से तैयार किया जाता है।


मार्गशीर्ष माह में नौ प्रकार के वाटकों को सुंदर ढंग से तैयार करके मुझे अर्पित करना चाहिए। (इन्हें दाल के आटे से बनाया जाता है और कटलेट की तरह तैयार किया जाता है।) जति (जायफल), मरीचि (काली मिर्च) आदि से दो प्रकार के वातक तैयार किए जाते हैं और लकड़ी के बड़े कुंडों में रखे जाते हैं।


एक प्रकार अत्यधिक परिष्कृत तेल में तैयार किया जाता है। नमक (वाटका बनाने से पहले आटे में) डाला जाता है. दूसरा प्रकार दुष्टों की भाँति स्नेह (तेल, प्रेम) से रहित होता है। इनका रंग भगवा है. वे छिद्रों से भरे हुए प्रतीत होते हैं।


कुछ दही और दूध में डाला जाता है, कुछ इमली या आम के रस में। कुछ को अंगूर के रस में और कुछ को गन्ने के रस में डाला जाता है।

अन्य को काली सरसों के पानी में डाला जाता है। कुछ में चीनी के साथ-साथ पहले बताए गए चार प्रकार के रस भी हैं। ये नौ प्रकार के वातक माने गये हैं।

निम्नलिखित चीजों को एक साथ मिलाकर एक बड़ी कड़ाही में अच्छी तरह से उबालना चाहिए|  हीरे और सुखारिका की तरह चमकदार बहुत छोटे बीज , नारियल की गिरी के टुकड़े और एक सौ लौंग, घी, दूध, चीनी आदि (यह खाद्य पदार्थ है) नैवेद्यों में से एक भी ।) चमकदार चिकनी फेणिका (कुंडल के रूप में घी में तले हुए गेहूं के आटे के साथ मिठाई) होनी चाहिए। इन फेनिकाओं को गहरे रंग के कृष्ण (सफेद जिंजली के बीज से बने मीठे गोले) के साथ परोसा जाना चाहिए । इलायची और कपूर के साथ पोलिकास ( पापाड जैसे केक डीप-फ्राइड) को पराकीकास ( बड़े गोलाकार कड़ाही) में पकाया जाना चाहिए (अर्थात तला हुआ)।


मोदका (विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ) को बनाया जाना चाहिए। अन्य को चीनी के साथ बनाया जाना चाहिए और दूध में भिगोया जाना चाहिए। अन्य किस्मों को नारियल के फलों (यानी गुठली) के साथ बनाया जाना चाहिए और अन्य को पेड़ों के रस के साथ बनाया जाना चाहिए।


अन्य मिठाइयाँ बादाम के बीजों से और शानदार मिठाइयाँ अदरक और जीरे के बीजों से तैयार की जानी चाहिए। ये मिठाइयाँ तथा अन्य (यहाँ उल्लिखित नहीं) मुझे प्रसन्न करने के लिए बनाई जानी चाहिए।


मार्गशीर्ष माह में मुझे प्रसन्न करने के लिए निम्नलिखित फलों का अचार आदि बनाना चाहिए: (नीचे वर्णित फलों को अलग-अलग या दो, तीन या चार के समूह में मिश्रित अचार के रूप में उपयोग किया जा सकता है।) मोकनी की बल्बनुमा जड़ , , अदरक, करमरदका संतरा, इमली, कंकोला  दशहरा  त्रिपुरिजता  , शानदार नींबू फल, कमल का डंठल, टिंडू फल  लौंग, तिलका  बिल्वा  लुटी वल्कला  वंशकारिरा (गन्ना मन्ना), कायफला 

 बाला , अंगूर फल , आम का फल, सुंदर कांकाकिनी फल 

 धात्री फल और अंबादावा फल  केला, लंबी काली मिर्च और मिर्च। इन्हें शुद्ध सरसों के तेल में भिगोना चाहिए और स्वाद के लिए नमक अवश्य मिलाना चाहिए। उन्हें सरसों के साथ पकाया जाना चाहिए। उपयोग से पहले इन्हें मिट्टी के बर्तन में रखकर तीन साल तक रखना चाहिए। मार्गशीर्ष माह में सम्मानदाता, ऐसा अचार मुझे अर्पित करना चाहिए। वे मुझे प्रसन्न कर रहे हैं.


यदि भक्त ये सभी भोजन अर्पित करने में असमर्थ है तो उसे निम्न प्रकार करना चाहिए। 

मैं इसे संक्षेप में बताऊंगा----

जो भक्त एक लाडू (मिठाई) और एक पूड़ा ( पूरी या घी में तली हुई , दो फेना ( घी में कुंडलित और डीप फ्राई किया हुआ), तीन कोकरसा (जंगली खजूर के फल का रस), सोलह मांडका चढ़ाता है। (घी में भिगोई हुई पेस्ट्री) और आठ वातकों को कभी नरक नहीं दिखेगा।


बहुत दिनों से रखा हुआ आधा आधाक (एक माप) दूध, चंद्रमा के समान चमकने वाली सोलह पल मिश्री , एक पल घी, एक पल शहद, दो करश काली मिर्च और आधा पल सोंठ ( अंतिम उल्लिखित चार में से प्रत्येक आधा पाला हो सकता है) - उपर्युक्त सभी सामग्रियों को अच्छी तरह से मिश्रित किया जाना चाहिए और एक महिला द्वारा अपने पतले हाथों से चिकने मुलायम कपड़े में पीसकर पेस्ट बनाया जाना चाहिए। फिर उन्हें कपूर के पाउडर से सफेद (चमकीले) किए हुए बर्तन में रख देना चाहिए। जो यह रसदार चीज़ बनाता है, वह कुछ भी चाह सकता है। मैं उस भक्त को वह सब कुछ दूँगा जो वह चाहता है।


पेश किए गए व्यंजनों के संबंध में टिप्पणी 

देवता को भोजन, फल ​​और अन्य खाद्य पदार्थ चढ़ाना एक महत्वपूर्ण उपाचार है । आम तौर पर, 'एक आदमी (भक्त) जो भी भोजन खाता है, वही भोजन उसके देवताओं को अर्पित किया।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह नैवेद्य 'जैसा कि इस पुराण के समय वास्तव में अभ्यास किया जाता है'  है।


कैसे लगाते हैं भगवान को भोग

भोग लगाने के लिए भोजन एवं जल पहले अग्नि के समक्ष रखें।

फिर देवों का आह्वान करने के लिए जल छिड़कें।

तैयार सभी व्यंजनों से थोड़ा-थोड़ा हिस्सा अग्निदेव को मंत्रोच्चार के साथ स्मरण कर समर्पित करें।

अंत में देव आचमन के लिए मंत्रोच्चार से पुन:जल छिड़कें और हाथ जोड़कर नमन करें।


गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

भगवान विष्णु के 24 अवतार कौन-कौन से हैं, जानिए उनकी संक्षिप्त कथा

 

भगवान विष्णु के 24 अवतार


1-श्री सनकादि मुनि 

धर्म ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में लोक पितामह ब्रह्मा ने अनेक लोकों की रचना करने की इच्छा से घोर तपस्या की। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तप अर्थ वाले सन नाम से युक्त होकर सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार नाम के चार मुनियों के रूप में अवतार लिया। ये चारों प्राकट्य काल से ही मोक्ष मार्ग परायण, ध्यान में तल्लीन रहने वाले, नित्यसिद्ध एवं नित्य विरक्त थे। ये भगवान विष्णु के सर्वप्रथम अवतार माने जाते हैं।


2- वराह अवतार 

धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने दूसरा अवतार वराह रूप में लिया था। पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। 


3- नारद अवतार

धर्म ग्रंथों के अनुसार देवर्षि नारद भी भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। शास्त्रों के अनुसार नारद मुनि, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक हैं। उन्होंने कठिन तपस्या से देवर्षि पद प्राप्त किया है।

  

4- नर-नारायण 

सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना के लिए दो रूपों में अवतार लिया। इस अवतार में वे अपने मस्तक पर जटा धारण किए हुए थे। उनके हाथों में हंस, चरणों में चक्र एवं वक्ष:स्थल में श्रीवत्स के चिन्ह थे। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने नर-नारायण के रूप में यह अवतार लिया था।


5- कपिल मुनि

भगवान विष्णु ने पांचवा अवतार कपिल मुनि के रूप में लिया। इनके पिता का नाम महर्षि कर्दम व माता का नाम देवहूति था। शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म पितामह के शरीर त्याग के समय वेदज्ञ व्यास आदि ऋषियों के साथ भगवा कपिल भी वहां उपस्थित थे। 


6- दत्तात्रेय अवतार

धर्म ग्रंथों के अनुसार दत्तात्रेय भी भगवान विष्णु के अवतार हैं।  ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ


7-  यज्ञ 

भगवान विष्णु के सातवे अवतार का नाम यज्ञ है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान यज्ञ का जन्म स्वायम्भुव मन्वन्तर में हुआ था। 


8- भगवान ऋषभदेव

भगवान विष्णु ने ऋषभदेव के रूप में आठवा अवतार लिया। 


9- आदिराज पृथु 

भगवान विष्णु के एक अवतार का नाम आदिराज पृथु है।


10- मत्स्य अवतार 

पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए मत्स्यावतार लिया था। समय आने पर मत्स्यरूपधारी भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान का उपदेश दिया, जो मत्स्यपुराण नाम से प्रसिद्ध है।


11- कूर्म अवतार 

धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुए) का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहते हैं। भगवान कूर्म  की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन संपन्न हुआ।


12- भगवान धन्वन्तरि

धर्म ग्रंथों के अनुसार जब देवताओं व दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उसमें से सबसे पहले भयंकर विष निकला जिसे भगवान शिव ने पी लिया। इसके बाद समुद्र मंथन से उच्चैश्रवा घोड़ा, देवी लक्ष्मी, ऐरावत हाथी, कल्प वृक्ष, अप्सराएं और भी बहुत से रत्न निकले। सबसे अंत में भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। यही धन्वन्तरि भगवान विष्णु के अवतार माने गए हैं। इन्हें औषधियों का स्वामी भी माना गया है।


13- मोहिनी अवतार

धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर देवताओं का भला किया।


14- भगवान नृसिंह 

भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया।


15- वामन अवतार 

कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया।


16- हयग्रीव अवतार 

भगवान हयग्रीव अवतार  में भगवान विष्णु की गर्दन और मुख घोड़े के समान थी। तब भगवान हयग्रीव रसातल में पहुंचे और मधु-कैटभ का वध कर वेद पुन: भगवान ब्रह्मा को दे दिए।


17- श्रीहरि अवतार 

धर्म ग्रंथों के अनुसार गजेंद्र की स्तुति सुनकर भगवान श्रीहरि प्रकट हुए और उन्होंने अपने चक्र से मगरमच्छ का वध कर दिया। भगवान श्रीहरि ने गजेंद्र का उद्धार कर उसे अपना पार्षद बना लिया।


18- परशुराम अवतार

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के  प्रमुख अवतारों में से एक थे। 


19- महर्षि वेदव्यास 

पुराणों में महर्षि वेदव्यास को भी भगवान विष्णु का ही अंश माना गया है। भगवान व्यास नारायण के कलावतार थे। इन्होंने ही महाभारत ग्रंथ की रचना भी की।


20- हंस अवतार

भगवान विष्णु महाहंस के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने सनकादि मुनियों के संदेह का निवारण किया। इसके बाद सभी ने भगवान हंस की पूजा की। 


21- श्रीराम अवतार

त्रेतायुग में राक्षसराज रावण का बहुत आतंक था। उसके वध के लिए भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लिया। भगवान विष्णु ने राम अवतार लेकर देवताओं को भय मुक्त किया।


22- श्रीकृष्ण अवतार

द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लेकर अधर्मियों का नाश किया। कंस का वध भी भगवान श्रीकृष्ण ने ही किया। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथि बने और दुनिया को गीता का ज्ञान दिया। धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बना कर धर्म की स्थापना की। भगवान विष्णु का ये अवतार सभी अवतारों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।


23- बुद्ध अवतार 

धर्म ग्रंथों के अनुसार बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध भी भगवान विष्णु के ही अवतार थे ।


24- कल्कि अवतार 

धर्म ग्रंथों के अनुसार कलयुग में भगवान विष्णु कल्कि रूप में अवतार लेंगे। कल्कि अवतार कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। पुराणों के अनुसार उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले के शंभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नामक तपस्वी ब्राह्मण के घर भगवान कल्कि पुत्र रूप में जन्म लेंगे। कल्कि देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुन:स्थापना करेंगे।


दशावतार जो कहे जाते है वो ----

 “दशावतार” (दस अवतार) प्रमुख हैं. गरुड़ पुराण में दशावतार का वर्णन है. वे हैं- मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतार.


बुधवार, 6 दिसंबर 2023

धन , ऐश्वर्य , प्रसिद्धी देने वाले भगवान् सूर्य देव के 12 नामों की प्रतिदिन जाप महिमा


सूर्यदेव के ये 12नाम



रविवार के दिन सूर्यदेव की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। जिस तरह से हम सभी को जल, वायु और पृथ्वी की जरूरत होती है ठीक उसी तरह जीवों को पुष्ट रहने और फलने-फूलने के लिए सूर्य की आवश्यकता होती है। सूर्य ऊर्जा का स्त्रोत है। शास्त्रों के अनुसार, सूर्य को सृष्टि का देवता कहा जाता है। मान्यता है कि सूर्य देव जिससे प्रसन्न होते हैं उस पर सदा अपना आशीर्वाद बनाए रखते हैं। आज के दिन अगर सूर्य भगवान की पूजा की जाए व्यक्ति को अपने जीवन में धन संपदा का सुख मिलता है। साथ ही मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।

कहते हैं जिसका सूर्य बलवान होता है उस पर सूर्य की कृपा दृष्टि हमेशा बनी रहती है। सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए व्यक्ति सुबह के समय सूर्य को अर्घ्य देते हैं। साथ ही नमस्कार करते हैं। सूर्य एक मात्र ऐसे देव हैं जो प्रत्यक्ष हैं। इन्हें ऊर्जा प्रदान करने वाला देव माना जाता है। साथ ही कहा तो यह भी जाता है कि सूर्यदेव की पूजा करने से व्यक्ति धन,सुख,समृद्धि,ऐश्वर्य और संपन्नता प्राप्त करता है। सूर्यदेव की पूजा करते समय अगर उनके 12नामों का जाप किया जाए तो इससे सूर्यदेव प्रसन्न हो जाते हैं। 


सूर्य के इन 12 नामों का प्रतिदिन करें जाप:


1- ॐ सूर्याय नम:


2- ॐ मित्राय नम:


3- ॐ रवये नम:


4- ॐ भानवे नम:


5- ॐ खगाय नम:


6- ॐ पूष्णे नम:


7- ॐ हिरण्यगर्भाय नम:


8- ॐ मारीचाय नम:


9- ॐ आदित्याय नम:


10- ॐ सावित्रे नम:


11- ॐ अर्काय नम:


12- ॐ भास्कराय नम:


सूर्य देव के ये 12 नाम जो भी व्यक्ति प्रतिदिन लेता है उसके जीवन से दरिद्रता , शोक , बीमारी , गृहक्लेश ,कर्ज़ा आदि सब दूर हो जाते है | और उसके जीवन मे भगवन सूर्य देव जैसा तेज़ आ जाता है 


मंगलवार, 5 दिसंबर 2023

सोमरस की सच्चाई , बदलिए अपनी सोच

सोमरस की सच्चाई


 देवों का प्रिय सोमरस यथार्थ में क्या है


सोमरस एक ऐसा पेय है,जिसका जिक्र देवताओं के वर्णन के साथ ही आता है। देवताओं से जुड़े हर ग्रंथ,कथा,संदर्भ में देवगणों को सोमरस का पान करते हुए बताया जाता है। इन समस्त वर्णनों में जिस तरह सोमरस का वर्णन किया जाता है,उससे अनुभव होता है कि यह अवश्य ही कोई बहुत ही स्वादिष्ट पेय है।

इसके साथ ही कई लोगों को यह भी लगता है कि जिस तरह आज मदिरा यानि शराब का सेवन बड़े ही शौक से किया जाता है,संभवतः यह भी उसी वर्ग का कोई मादक पदार्थ है, जिसके चमत्कारिक प्रभाव हैं।

यदि आप भी सोमरस के बारे में जानकारी बढ़ाना चाहते हैं तो आइए,एक नजर डालते हैं इस पर-


क्या है सोमरस?


सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि सोमरस मदिरा की तरह कोई मादक पदार्थ नहीं है। हमारे वेदों में सोमरस का विस्तृत विवरण मिलता है। विशेष रूप से ऋग्वेद में तो कई ऋचाएं विस्तार से सोमरस बनाने और पीने की विधि का वर्णन करती हैं। हमारे धर्मग्रंथों में मदिरा के लिए मद्यपान शब्द का उपयोग हुआ है,जिसमें मद का अर्थ अहंकार या नशे से जुड़ा है। इससे ठीक अलग सोमरस के लिए सोमपान शब्द का उपयोग हुआ है, जहां सोम का अर्थ शीतल अमृत बताया गया है। मदिरा के निर्माण में जहां अन्न या फलों को कई दिन तक सड़ाया जाता है,वहीं सोमरस को बनाने के लिए सोम नाम के पौधे को पीसने,छानने के बाद दूध या दही मिलाकर लेने का वर्णन मिलता है। इसमें स्वादानुसार शहद या घी मिलाने का भी वर्णन मिलता है। इससे प्रमाणित होता है कि सोमरस मदिरा किसी भी स्थिति में नहीं है।


कहां और कैसा है सोम का पौधा?

अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर सोमरस बनाने में प्रयुक्त होने वाला प्रमुख पदार्थ यानि सोम का पौधा देखने में होता कैसा है और कहां पाया जाता है?मान्यता है कि सोम का पौधा पहाडि़यों पर पाया जाता है,राजस्थान के अर्बुद,उड़ीसा के हिमाचल,विंध्याचल और मलय पर्वतों पर इसकी लताएं पाए जाने का उल्लेख मिलता है। कई विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान में आज भी यह पौधा पाया जाता है,जिसमें पत्तियां नहीं होतीं और यह बादामी रंग का होता है। यह पौधा अति दुर्लभ है क्योंकि इसकी पहचान करने में सक्षम प्रजाति ने इसे सबसे छुपाकर रखा था। काल के साथ सोम के पौधे को पहचानने वाले अपनी गति को प्राप्त होते गए और इसकी पहचान भी मुश्किल हो गई।


देवता सोमरस पीते थे,जबकि असुर सुरा/मदिरा का पान करते थे।

सोमरस सोम के पौधे से प्राप्त जड़ी-बुट्टी से बनायी जाती थी,आज सोम का पौधा लगभग विलुप्त है, 

शराब पीने को सुरापान कहा जाता था,सुरापान असुर करते थे,ऋग्वेद में सुरापान को घृणा के तौर पर देखा गया है।

टीवी सीरियल्स में भगवान इंद्र को अप्सराओं से घिरा दिखाया जाता है और वो सब सोमरस पीते रहते हैं,जिसे सामान्य जनता शराब समझती है|सोमरस,सोम नाम की जड़ीबूटी थी जिसमे दूध और दही मिलाकर ग्रहण किया जाता था,इससे व्यक्ति बलशाली और बुद्धिमान बनता था|

जब यज्ञ होते थे तो सबसे पहले अग्नि को आहुति सोमरस से दी जाती थी| ऋग्वेद में सोमरस पान के लिए अग्नि और इंद्र का सैकड़ो बार आह्वान किया गया है|आप जिस इंद्र को सोचकर अपने मन मे टीवी सीरियल की छवि बनाते हैं वास्तविक रूप से वैसा कुछ नही था।

जब वेदों की रचना की गयी तो अग्नि देवता, इंद्र देवता, रुद्र देवता आदि इन्ही सब का महत्व लिखा गया है|


मन मे वहम मत पालिये  

कहीं पढ़ रहा था,किसी ने पोस्ट किया था कि देवता भी सोमरस पीते थे तो हम भी पियेंगे तो अचानक मन मे आया तो लिख दिया।

आज का चरणामृत/पंचामृत सोमरस की तर्ज पर ही बनाया जाता है जिसमे सोम जड़ीबूटी की कमी है।

तो एक बात दिमाग मे बैठा लीजिये,सोमरस नशा करने की चीज नही थी। आपको सोमरस का गलत अर्थ पता है। अगर आप उसे शराब समझते हैं।शराब को शराब कहिए सोमरस नहीं ।सोमरस का अपमान मत करिए,सोमरस उस समय का चरणामृत/पंचामृत था ।


सोमवार, 4 दिसंबर 2023

स्कंद पुराण के वैष्णव-खंड के अंतर्गत तुलसी महात्मय एवं शंख की पूजा

 तुलसी महात्मय एवं शंख की पूजा


तुलसी महात्मय एवं शंख की पूजा



ब्रह्मा ने कहा हे केशव ,यदि कोई स्वयं को लाल गर्म चक्र से चिन्हित करता है और दीक्षा लेता है ,तो मुझे बताएं कि कमल के बीज और तुलसी की टहनियों की माला से क्या लाभ होता है?

श्री भगवान ने कहा जो ब्राह्मण तुलसी की टहनियों की माला पहनता है,वह निस्संदेह मुझे प्राप्त होता है,भले ही वह अशुद्ध और अच्छे आचरण से रहित हो। 

जिस मनुष्य के शरीर पर धात्री फल या तुलसी की टहनियों से बनी माला दिखाई देती है, वह वास्तव में भागवत (भगवान का भक्त) है। जो तुलसी के पत्तों की माला पहनता है, विशेषकर मुझसे उतारी हुई माला (अर्थात मेरे आदर्श)को,वह स्वर्गवासियों द्वारा भी नमस्कार करने योग्य है।

तुलसी के पत्तों या धात्री फलों से बनी माला पापियों को भी मोक्ष प्रदान करती है। ऐसा ही मेरे उन भक्तों के मामले में भी है जो मेरी सेवा करते हैं।

जो तुलसी के पत्तों की माला (मेरे द्वारा पहनी गई)पहनता है,उसे प्रत्येक पत्ते के लिए दस अश्व-यज्ञों का पुण्य प्राप्त होता है।

यदि कोई व्यक्ति तुलसी की टहनियों की माला पहनता है,तो हे प्रिय,मैं उसे प्रतिदिन (पवित्र शहर द्वारका की यात्रा)से मिलने वाला पुण्य प्रदान करता हूं।

यदि कोई मनुष्य भक्तिपूर्वक मुझे समर्पित करके तुलसी की टहनियों की माला धारण करता है,तो उसे कोई पाप नहीं लगता।

जो तुलसी की टहनियों की माला धारण करता है उससे राम सदैव प्रसन्न रहते हैं। वह (मेरे लिये)उत्तम प्राणवायु के समान है। यह आवश्यक नहीं है कि वह कोई प्रायश्चित्त संस्कार करे। उसके शरीर में कुछ भी अशुद्ध या प्रदूषित नहीं है। जिसके शरीर में तुलसी की टहनियाँ सिर,भुजाओं और हाथों के लिए आभूषण बनती हैं,वह मुझे प्रिय है।

तुलसी की टहनियों की माला से श्रृंगार कर पुण्य कर्म करना चाहिए। पितरों और देवताओं के (उनके द्वारा किए गए)शुभ संस्कारों का करोड़ों गुना लाभ होगा। तुलसी की टहनियों की माला देखकर यम के दूत हवा से हिले हुए पत्ते की तरह दूर से ही गायब हो जाते हैं।

कलियुग में जिस घर में तुलसी की टहनी या पत्ता,चाहे वह सूखा हो या हरा,मौजूद हो, उस घर को पाप दूषित नहीं करता।

यदि कोई तुलसी की टहनियों की माला से अलंकृत होकर पृथ्वी पर विचरण करेगा,तो उसे बुरे स्वप्न,अपशकुन या शत्रुओं से कोई खतरा नहीं दिखेगा।

यदि तर्कवादी या पापी इरादे वाले विधर्मी (तुलसी की माला)पहनने से इनकार करते हैं, तो वे कभी भी नरक से नहीं लौटेंगे। वे मेरे क्रोध की आग से जल जायेंगे। इसलिए तुलसी की टहनी,कमल के बीज या धात्री फल से बनी माला सावधानी और श्रद्धापूर्वक पहननी चाहिए। यह उत्तम योग्यता प्रदान करता है।

अत:भक्त को अर्धवापुण्ड्र और शंख आदि की छाप रखनी चाहिए। हाथ में दरभा घास लेकर मेरा स्मरण करना चाहिए और तुलसी के पौधे की जड़ में संध्या प्रार्थना आदि करनी चाहिए।

जो भक्त संध्या आदि कर चुका हो,उसे उसके बाद मेरी पूजा करनी चाहिए। यदि गुरु वहां मौजूद है तो सबसे पहले उसके पास जाकर उन्हें प्रणाम करना चाहिए। फिर उसे कुछ भेंट करके आनन्दपूर्वक उसके साम्हने दण्डवत् करना चाहिए। आचमन संस्कार करने के बाद उसे पूजा मंडप में प्रवेश करना चाहिए।

उसे मृगचर्म या कुश घास बिछाकर सुंदर आसन ग्रहण करके कमल के आसन पर विधिवत बैठना चाहिए। उसे भूतशुद्धि (तत्वों की शुद्धि)का अनुष्ठान करना चाहिए । मंत्र का जाप करते हुए और इंद्रियों को वश में करते हुए,उसे मुंह की ओर मुंह करके (सांस रोककर)तीन प्राणायाम करने चाहिए। उसे पूर्ण ज्ञान के सूर्य के माध्यम से हृदय के उत्कृष्ट कमल को खिलना चाहिए।

(उस कमल के)पेरिकार्प पर उसे सूर्य,चंद्रमा और अग्नि को स्थापित करना चाहिए। विष्णु के भक्त को उस में तीनों की कल्पना करनी चाहिए जिसमें तीन (पंखुड़ियाँ) हैं। उनके ऊपर उसे विभिन्न प्रकार के रत्नों से जड़ी हुई एक चौकी रखनी चाहिए।

उस पर उसे भगवान के आठ ऐश्वर्य (अतिमानवीय उत्कृष्टता)का प्रतिनिधित्व करने वाले आठ पंखुड़ियों वाले कमल को स्थापित करना चाहिए। कमल में मंत्र के (आठ) अक्षर होते हैं (ओम नमो नरायाणाय )। कमल मुलायम,चमकदार है और इसमें सुबह के सूरज की आभा है।

फिर उसे मुझ पर (आराम से) बैठे हुए,चार भुजाओं वाले,महान कमल,शंख,चक्र और लोहे की गदा धारण करने वाले भगवान का ध्यान करना चाहिए। भगवान करोड़ों चंद्रमाओं के समान हैं। उनकी आंखें कमल की पंखुड़ियों के समान बड़ी हैं। वह सभी अच्छी विशेषताओं (या शरीर पर प्रतीकों)से प्रतिष्ठित है। श्रीवत्स और कौस्तुभ उनकी छाती पर चमकते हैं। उन्होंने पीले वस्त्र पहने हुए हैं|वह अद्भुत आभूषणों से संपन्न है। वह दिव्य सजावटी वस्तुओं से अलंकृत है। उनके शरीर पर दिव्य चंदन का लेप लगा हुआ है। वह दिव्य पुष्पों से शोभायमान दिखाई देता है। वह तुलसी के कोमल पत्तों और सिल्वानस के फूलों की मालाओं से सुशोभित हैं। वह करोड़ों उगते सूर्यों के समान तेज से चमकता है। उनके शरीर को दिव्य देवी श्री ने आलिंगन किया है,जिनमें सभी अच्छे लक्षण हैं। वह शुभ है.इस प्रकार ध्यान करने के बाद उसे पूरी एकाग्रता और पवित्रता के साथ मंत्र का जाप करना चाहिए।

उसे अपनी क्षमता के अनुसार मंत्र को हजार या सौ बार दोहराना चाहिए। मानसिक रूप से पूजा करने के बाद उसे विधि-विधान के अनुसार पूजा करनी चाहिए। जैसा कि परिपाटी में कहा गया है,उसे शंख मेरे सामने रखना चाहिए। सुगन्धित जल,दूर्वा के अंकुर तथा पुष्पों से भरा पात्र गुरुजनों को चन्दन एवं पुष्पों के दाहिनी ओर रखना चाहिए। जल का कलश बाईं ओर रखना चाहिए। इसे कपड़े से पवित्र किया जाना चाहिए और अच्छी तरह से सुगंधित किया जाना चाहिए। घंटी सामने रखनी चाहिए और दीपक अलग-अलग दिशाओं में रखना चाहिए। अन्य सामग्रियों को भी उनके उचित स्थान पर चढ़ाया जाना चाहिए।

मेरे सामने अर्घ्य,पाद्य ,आचमनीय और मधुपर्क रखने के लिए चार पात्र रखे जाने चाहिए ।

हे चतुर्मुखी,अर्घ्य के पात्र में सफेद सरसों,कच्चे चावल के दाने,फूल,कुश घास,तिल के बीज,चंदन का लेप,फल और जौ के दाने रखने चाहिए ।

हे पुत्र ,मेरी संतुष्टि के लिए गुरु को पाद्य के पात्र में दूर्वा घास,विष्णुपदी(गंगाजल),श्यामा और कमल रखना चाहिए। हे पुत्र,आचमनिय के बर्तन में उसे बड़े विश्वास के साथ कंकोला,लौंग और जायफल रखना चाहिए। पूजा करने वाले को श्रद्धापूर्वक मधुपर्क के पात्र में गाय का दूध,दही,शहद,घी और मिश्री रखनी चाहिए ।

जब उपर्युक्त वस्तुएं उपलब्ध न हों तो पूजा-विधि के विशेषज्ञ को हमेशा पत्ते और फूल इस विचार से रखना चाहिए कि ये (विधि में)आवश्यक वस्तुएं हैं।

इसके बाद उसे हाथ के साथ-साथ अंगों का भी न्यास करना चाहिए। परंपरा के अनुसार, उसे पांच या छह अंगों पर न्यास संस्कार करना चाहिए। मुझे याद किया जाना चाहिए|भक्त को स्वयं को मेरे बराबर समझना चाहिए।


                           शंख की पूजा एवं महात्मय 


 पूजा की शुरुआत में,हे चतुर्मुखी,मनुष्य को शुभ मंत्रों का पाठ करना चाहिए । फिर उसे मेरे प्रिय शंख पाञ्चजन्य की पूजा करनी चाहिए। हे प्रिय,इसकी पूजा करके वह मुझे बहुत प्रसन्न करता है। शंख की पूजा के दौरान,हे प्रिय,उसे निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए:

“हे पाञ्चजन्य,पहले आप समुद्र से पैदा हुए थे। तुम्हें विष्णु ने अपने हाथ में पकड़ रखा है। तुम्हें सभी देवताओं ने बनाया है। आपको प्रणाम,आपकी ध्वनि से बादल,सुर और असुर भयभीत हो जाते हैं। दस हजार चंद्रमाओं की उज्ज्वल चमक वाले हे पाञ्चजन्य,आपको नमस्कार है। हे पाञ्चजन्य,राक्षसों की स्त्रियों के भ्रूण हजारों की संख्या में पाताल लोक में नष्ट हो जाते हैं। आपको प्रणाम।”

शंख के दर्शन मात्र से पाप वैसे ही नष्ट हो जाते हैं जैसे सूर्योदय के समय धुंध गायब हो जाती है। यह और भी अधिक तब होता है जब इसे छुआ जाता है। यदि कोई वैष्णव भक्त हाथ में शंख लेकर प्रणाम करता है और श्रद्धापूर्वक इन मंत्रों को दोहराते हुए मुझे स्नान कराता है,तो उसका पुण्य अनंत होता है।

इसके बाद उसे सुगन्धित तेल से मूर्ति का अभिषेक करना चाहिए और चंदन तथा कस्तूरी से निबटना और शुद्धि आदि करनी चाहिए। मुझे मंत्रों सहित परम पवित्र सुगन्धित जल से स्नान कराना चाहिये। फिर,हे प्रिय,उसे अर्घ्य,पाद्य,आचमनीयक और मधुपर्क अर्पित करना चाहिए । इसके बाद,उसे सभी अपेक्षित सेवाएं प्रदान करनी चाहिए।

आदेश के अनुसार पीठ को दिव्य वस्त्रों और आभूषणों से सुशोभित किया जाना चाहिए । फिर उस आसन की फूलों से पूजा करनी चाहिए।

वहां भगवान को स्थापित करके वस्त्र,आभूषण,गंध आदि मुझे श्रद्धापूर्वक अर्पित करना चाहिए। फिर उसे दूध-खीर और मीठी पाई के साथ विभिन्न प्रकार के नैवेद्य का विधिवत भोग लगाना चाहिए। इसे कपूर और पान के पत्ते के साथ श्रद्धापूर्वक अर्पित करना चाहिए।

मनुष्यों को श्रद्धापूर्वक सुगंधित पुष्प अर्पित करने चाहिए। दस द्रव्यों से युक्त धूप और आठ मनमोहक दीपों से युक्त दीपक अर्पित करना चाहिए। फिर उसकी परिक्रमा करनी चाहिए और प्रणाम करना चाहिए। फिर बड़े आदर के साथ स्तोत्र द्वारा उसकी स्तुति करनी चाहिए। भगवान को शयनकक्ष में लिटाकर शुभ अर्घ्य देना चाहिए ।


शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023

प्रति वर्ष दशहरे के बाद ठीक 21 दिन बाद ही दीपावली क्यों आती है ? लक्ष्मी का वरदान ,कैसे करें घर की सफाई

 प्रति वर्ष दशहरे के बाद ठीक 21 दिन बाद ही दीपावली क्यों आती है ?

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क्या कभी आपने इस पर विचार किया है। विश्वास न हो तो कैलेंडर देख लीजिएगा।


 रामायण में वाल्मिकीऋषि ने लिखा है कि प्रभु श्री राम को अपनी पूरी सेना को श्रीलंका से अयोध्या तक पैदल चलकर आने में 21दिन (इक्कीस दिन यानी 504 घंटे) लगे,अब हम 504 घंटे को 24घंटे से भाग दें तो उत्तर 21  आता है यानी इक्कीस दिन, मुझे भी आश्चर्य हुआ । कुछ भी बताया है यह सोचकर कौतूहल वश गूगल मैप पर सर्च किया। उसमें दर्शाता है कि श्रीलंका से अयोध्या की पैदल दूरी 3145 किलोमीटर और लगने वाला समय 504 घंटे।।। 

हैं न आश्चर्यजनक बात। वर्तमान समय में गूगल मैप को पूरी तरह विश्वनीय माना जाता है। लेकिन हम भारतीय लोग तो दशहरा और दीपावली त्रेतायुग से चली आ रही परंपरानुसार मनाते आ रहे हैं।समय के इस गणित पर आपको विश्वास न हो रहा हो तो गूगल सर्च कर देख सकते हैं तथा औरों को भी दीजिए यह रोचक जानकारी।और वाल्मिकी ऋषि ने तो रामायण की रचना श्रीराम के जन्म से पहले ही कर दी थी।!!! उनका भविष्यवाणी और आगे घटने वाली घटनाओं का वर्णन कितना सटीक था। अपनी सनातन हिन्दू संस्कृति कितनी महान है। हमें गर्व है ऐसी महान हिन्दू संस्कृति में जन्म लेने पर।


झाड़ू को लक्ष्मी जी इसलिए कहते हैं क्योंकि झाड़ू को लक्ष्मी का वरदान मिला हुआ है, झाड़ू का स्थान हमारे घर में बहुत ही महत्वपूर्ण होता है वह हमारे घर मैं बहुत अधिक महत्व रखती है 


अगर कोई व्यक्ति घर से बाहर जा रहा होता है ,तो उसके बाद में झाड़ू नहीं लगानी चाहिए ।झाड़ू को घर में छुपा कर रखना चाहिए ,इधर उधर कहीं भी नहीं रखनी चाहिए,किसी भी बाहर वाले व्यक्ति के आने पर झाड़ू नहीं देनी चाहिए ।


झाड़ू के कभी भी पैर नहीं लगाने चाहिए, और झाड़ू को सीधा खड़ा नहीं रखना चाहिए ,झाड़ू में मां लक्ष्मी का वास होता है अगर गलती से कभी पैर लग भी जाए तो उसको प्रणाम करना चाहिए।


झाड़ू का हमें आदर करना चाहिए ,ज्यादा पुरानी टूटी-फूटी झाड़ू का इस्तेमाल घर में नहीं करना चाहिए, इससे घर में रोजगार धंधे में वृद्धि नहीं होती है ,


नई झाड़ू का इस्तेमाल हमें शनिवार को ही करना चाहिए ,और उसे छुपा कर रखना चाहिए । घर के मुख्य द्वार ,छत पर बिल्कुल भी नहीं रखनी चाहिए ।


झाड़ू को कभी भी किचन में नहीं रखना चाहिए घर में दरिद्रता आती है ,झाड़ू को कभी भी बेडरूम में नहीं रखना चाहिए इससे पति-पत्नी के बीच में झगड़े होने की पूरी संभावना रहती है ।


सूर्यास्त के बाद कभी भी झाड़ू पोछा नहीं करना चाहिए , झाडू पर कभी भी गलती से भी पैर नहीं रखना चाहिए क्योंकि झाड़ू में लक्ष्मी मां का वास होता है वह मां लक्ष्मी को अति प्रिय है और उनका एक हाथ में झाड़ू रहती है।


झाड़ू को कभी भी गीली नहीं रखनी चाहिए, झाड़ू से कभी भी किसी व्यक्ति या जानवर को नहीं मारना चाहिए,नए घर में अगर प्रवेश कर रहे हैं तो नई झाड़ू जरूर खरीदना चाहिए ।


झाड़ू से कभी भी झुठन साफ नहीं करनी चाहिए, ना ही झाड़ू को कभी उलागना चाहिए,अमावस्याा या शनिवार को पुरानी झाड़ू टूटी- फूटी झाड़ू को घर से बाहर फेंकना चाहिए।


गुरुवार या शुक्रवार को कभी भी झाड़ू को नहीं फेकनी चाहिए ,या घर से बाहर नहीं निकालनी चाहिए , नहीं तो मां लक्ष्मी भी घर से चली जाएगी।


कैसे करें घर की सफाई

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कहते हैं जिस घर में साफ-सफाई होती है वहां माता लक्ष्मी का वास होता है। क्योंकि धन की देवी मां लक्ष्मी को सफाई अत्यंत प्रिय है। परंतु वास्तु शास्त्र में सफाई को लेकर कुछ नियम बताए गए हैं, जिनके अनुसार घर की सफाई की जाए तो घर में सुख-समृद्धि के सारे रास्ते खुल जाते हैं।


अपने घर को साफ रखना किसको पसंद नहीं होता। घर की साफ सफाई से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार तो बढ़ता ही है साथ की घर में बीमारियां भी कम फैलती हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में रखी हर वस्तु का प्रभाव घर के सदस्यों की तरक्की, सेहत और मानसिक स्थिति पर पड़ता है। वास्तु शास्त्र में बताया गया है कि यदि आप वास्तु के कुछ नियमों का पालन कर घर की साफ-सफाई करें तो आपके घर में सदैव सुख-समृद्धि बनी रहेगी।


साफ-सफाई का समय

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वास्तु शास्त्र में बताया गया है कि कभी भी सूर्यास्त के बाद या फिर सुबह-सुबह ब्रह्म मुहूर्त में घर में झाड़ू नहीं लगाई जानी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यह समय माता लक्ष्मी के घर में प्रवेश करने का होता है, लेकिन यदि किन्हीं कारणों से आपको इस समय झाड़ू लगाना पड़ जाए तो इसमें निकले कचरे को सुबह सूर्य उदय के बाद ही घर से बाहर फेंकें।


घर के कोनों का रखें ध्यान

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वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की उत्तर दिशा, ईशान कोण और वायव्य कोण का साफ सुथरा और खाली होना बहुत जरूरी है। ऐसा माना जाता है कि घर की इन दिशाओं में धन के देवता कुबेर का वास होता है। इसीलिए घर के सभी कोनों की साफ-सफाई रखना बहुत जरूरी है।


बाथरूम की साफ सफाई

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ऐसा देखा गया है कि बहुत से लोग अपने घर को तो साफ सुथरा रखते हैं, लेकिन बाथरूम की साफ सफाई की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देते। आपको बता दें कि घर के साथ-साथ अपने टॉयलेट, बाथरूम को साफ रखना भी बहुत जरूरी होता है। इसके अलावा घर के बाथरूम और टॉयलेट में कभी भी मकड़ी के जाले लगने ना दें। ऐसा होने से घर में वास्तु दोष उत्पन्न होता है।


छत पर कबाड़

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वास्तु शास्त्र में कहा गया है कि घर की बालकनी या छत पर टूटी फूटी चीजें या कबाड़ इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ऐसा होने से घर में दरिद्रता का प्रवेश होता है। साथ ही टूटी फूटी चीजों में पानी जमा होने के कारण मलेरिया जैसी घातक बीमारियां भी पनपती हैं।

माता वैष्णो देवी की सर्वाधिक प्रचलित कथा, मातावैष्णो देवी और भैरोंनाथ की पौराणिक कथा

 मातावैष्णो देवी और भैरोंनाथ की कथा 

मातावैष्णो देवी और भैरोंनाथ की कथा

"भैरौंनाथ ने कन्या रूपी मां का हाथ पकड़ लिया लेकिन माता ने अपना हाथ भैरौं के हाथ से छुड़वाया और त्रिकूट पर्वत की ओर चल पड़ी। भैरौं उनका पीछा करते हुए उस स्थान पर आ गए। भैरौं का युद्ध श्री हनुमान से हुआ जब वीर लंगूर निढाल होने लगे तो माता वैष्णो ने महाकाली के रूप में भैरौं का वध कर दिया।"

हिंदू महाकाव्य के अनुसार, मां वैष्णो देवी ने भारत के दक्षिण में रत्नाकर सागर के घर जन्म लिया। उनके लौकिक माता-पिता लंबे समय तक निःसंतान थे। 

दैवी बालिका के जन्म से एक रात पहले, रत्नाकर ने वचन लिया कि बालिका जो भी चाहे, वे उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आएंगे। मां वैष्णो देवी को बचपन में त्रिकुटा नाम से बुलाया जाता था। बाद में भगवान विष्णु के वंश से जन्म लेने के कारण वे वैष्णवी कहलाईं।

 जब त्रिकुटा 9 साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता से समुद्र के किनारे पर तपस्या करने की अनुमति चाही। त्रिकुटा ने राम के रूप में भगवान विष्णु से प्रार्थना की| सीता की खोज करते समय श्री राम अपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुंचे। उनकी दृष्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका पर पड़ी।

 त्रिकुटा ने श्री राम से कहा कि उसने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया है। श्री राम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है। लेकिन भगवान ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग में वे कल्कि के रूप में प्रकट होंगे और उससे विवाह करेंगे।

इस बीच, श्री राम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफ़ा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा|रावण के विरुद्ध श्री राम की विजय के लिए मां ने 'नवरात्र' मनाने का निर्णय लिया।

इसलिए उक्त संदर्भ में लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं। श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाई जाएगी| त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी।

समय के साथ-साथ, देवी मां के बारे में कई कहानियां उभरीं| ऐसी ही एक कहानी है श्रीधर की| श्रीधर मां वैष्णो देवी का प्रबल भक्त थे। वे वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हंसली गांव में रहता थे। एक बार मां ने एक मोहक युवा लड़की के रूप में उनको दर्शन दिए।

युवा लड़की ने विनम्र पंडित से 'भंडारा' (भिक्षुकों और भक्तों के लिए एक प्रीतिभोज) आयोजित करने के लिए कहा. पंडित गांव और निकटस्थ जगहों से लोगों को आमंत्रित करने के लिए चल पड़े| उन्होंने एक स्वार्थी राक्षस 'भैरव नाथ' को भी आमंत्रित किया। भैरव नाथ ने श्रीधर से पूछा कि वे कैसे अपेक्षाओं को पूरा करने की योजना बना रहे हैं। 

उसने श्रीधर को विफलता की स्थिति में बुरे परिणामों का स्मरण कराया, चूंकि पंडित जी चिंता में डूब गए, दिव्य बालिका प्रकट हुईं और कहा कि वे निराश ना हों, सब व्यवस्था हो चुकी है। उन्होंने कहा कि 360 से अधिक श्रद्धालुओं को छोटी-सी कुटिया में बिठा सकते हो, उनके कहे अनुसार ही भंडारा में अतिरिक्त भोजन और बैठने की व्यवस्था के साथ निर्विघ्न आयोजन संपन्न हुआ।

भैरव नाथ ने स्वीकार किया कि बालिका में अलौकिक शक्तियां थीं और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया। उसने त्रिकुटा पहाड़ियों तक उस दिव्य बालिका का पीछा किया। 9 महीनों तक भैरव नाथ उस रहस्यमय बालिका को ढूँढ़ता रहा, जिसे वह देवी मां का अवतार मानता था। 

भैरव से दूर भागते हुए देवी ने पृथ्वी पर एक बाण चलाया, जिससे पानी फूट कर बाहर निकला. यही नदी बाणगंगा के रूप में जानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि बाणगंगा (बाण: तीर) में स्नान करने पर, देवी माता पर विश्वास करने वालों के सभी पाप धुल जाते हैं। 

 नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं। इसके बाद वैष्णो देवी ने अधकावरी के पास गर्भ जून में शरण ली, जहां वे 9 महीनों तक ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियां प्राप्त कीं| भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई।

जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महाकाली का रूप लिया। दरबार में पवित्र गुफ़ा के द्वार पर देवी मां प्रकट हुईं| देवी ने ऐसी शक्ति के साथ भैरव का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफ़ा से 2.5 कि॰मी॰ की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी.

भैरव ने मरते समय क्षमा याचना की।

देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान भी दिया कि भक्त द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए कि तीर्थ-यात्रा संपन्न हो चुकी है, यह आवश्यक होगा कि वह देवी मां के दर्शन के बाद, पवित्र गुफ़ा के पास भैरव नाथ के मंदिर के भी दर्शन करें|इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं।

इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए। वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था। अंततः वे गुफ़ा के द्वार पर पहुंचे। उन्होंने कई विधियों से 'पिंडों' की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली।

देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं, वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया, तब से, श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं।


नवदुर्गा कन्या पूजन

नौ दुर्गा का मतलब नौ वर्ष की कन्या की पूजा करना होता है। कन्या पूजन दो वर्ष की कन्या से शुरू किया जाता है।


2 वर्ष की कन्या को ' कुमारिका ' कहते हैं और इनके पूजन से धन , आयु , बल की वृद्धि होती है।


3 वर्ष की कन्या को ' त्रिमूर्ति ' कहते हैं और इनके पूजन से घर में सुख समृद्धि आती है।


4 वर्ष की कन्या को ' कल्याणी ' कहते हैं और इनके पूजन से सुख तथा लाभ मिलते हैं।


5 वर्ष की कन्या को ' रोहिणी ' कहते हैं इनके पूजन से स्वास्थ्य लाभ मिलता है।


6 वर्ष की कन्या को ' कालिका ' कहते हैं इनके पूजन से शत्रुओं का नाश होता है।


7 वर्ष की कन्या को ' चण्डिका ' कहते हैं इनके पूजन से संपन्नता ऐश्वर्य मिलता है।


8 वर्ष की कन्या को ' साम्भवी ' कहते हैं इनके पूजन से दुःख-दरिद्रता का नाश होता है।


9 वर्ष की कन्या को ' दुर्गा ' कहते हैं इनके पूजन से कठिन कार्यों की सिद्धि होती है।


10 वर्ष की कन्या को ' सुभद्रा ' कहते हैं इनके पूजन से मोक्ष की प्राप्ति होती है|


Impotant

रोचक कहानी संपत्ति बड़ी या संस्कार

       दक्षिण भारत में एक महान सन्त हुए तिरुवल्लुवर। वे अपने प्रवचनों से लोगों की समस्याओं का समाधान करते थे। इसलिए उन्हें सुनने के लिए दूर-...