शरद पूर्णिमा और की कथा और इसका महत्त्व
पौराणिक कथा के अनुसार - समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी प्रगट हुई थी | मान्यता है की भगवान विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी गरुड़ मे बैठकर पृथ्वीलोक का भ्रमण करती है | ऐसे मे जो भक्त सारी रात जागकर व्रत रखते है माता उन पर अपनी कृपा बरसाती है |
एक और मान्यता है कि इस दिन भगवान् श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था | मुख्य रूप से पूर्णिमा का व्रत लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किया जाता है | इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है. रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करने की परंपरा है.
इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा -पूजन व श्रृंगार किया जाता है। भगवान को सफेद वस्त्र धारण कराये जाते है। रात को भगवान को दूध और चावल से बनी खीर का भोग लगाया जाता है। भोग लगाकर खीर को रात भर चन्द्रमा की चांदनी में रखा जाता है ।
शरद पूर्णिमा कब मनाई जाती है :-
आश्विन मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते है | इस दिन चन्द्रमा अपने पूरे तेज़ मे सोलह कलाओं के साथ चमकता है | ऐसी मान्यता है की आज की रात चन्द्रमा से अमृत बरसता है | इस दिन चन्द्रमा की किरणों मे आत्मा शरीर दोनों शुद्ध करने की शक्ति होती है |हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार सोलह कलाओं के सामंजस्य से ही किसी सम्पूर्ण मानव का जन्म होता है। सिर्फ भगवान श्री कृष्ण का जन्म पूरी सोलह कलाओं के साथ हुआ था।
इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और जितेन्द्रिय भाव से रहे। धनवान व्यक्ति ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए दीपक जलाए। फिर घी मिश्रित खीर बनायें और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमाँ की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर (३ घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक निर्धनों और दीन-बन्धुुुओं को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएँ और उनके साथ ही माङ्गलिक गीत गाकर तथा मङ्गलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें। तदनन्तर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा किसी दीन दुःखी को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी।
इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अन्त होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।
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