गुरुवार, 26 अक्टूबर 2023

जानिए क्या है शरद पूर्णिमा की कथा और इसका महत्त्व

  शरद पूर्णिमा और की कथा और इसका महत्त्व 


शरद पूर्णिमा


पौराणिक कथा के अनुसार - समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी प्रगट हुई थी | मान्यता है की भगवान विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी गरुड़ मे बैठकर पृथ्वीलोक का भ्रमण करती है | ऐसे मे जो भक्त सारी रात जागकर व्रत रखते है माता उन पर अपनी कृपा बरसाती है | 

 एक और मान्यता है कि इस दिन भगवान् श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था | मुख्य रूप से पूर्णिमा का व्रत लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किया  जाता है | इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है. रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करने की परंपरा है.

इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा -पूजन व श्रृंगार किया जाता है। भगवान को सफेद वस्त्र धारण कराये जाते है। रात को भगवान को दूध और चावल से बनी खीर का भोग लगाया जाता है। भोग लगाकर खीर को रात भर चन्द्रमा की चांदनी में रखा जाता है ।


शरद पूर्णिमा कब मनाई जाती है :-

आश्विन मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते है | इस दिन चन्द्रमा अपने पूरे तेज़ मे सोलह कलाओं के साथ चमकता है | ऐसी मान्यता है की आज की रात चन्द्रमा से अमृत बरसता है | इस दिन चन्द्रमा की किरणों मे आत्मा शरीर दोनों शुद्ध करने की शक्ति होती है |हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार सोलह कलाओं के सामंजस्य से ही किसी सम्पूर्ण मानव का जन्म होता है। सिर्फ भगवान श्री कृष्ण का जन्म पूरी सोलह कलाओं के साथ हुआ था।

बहुत जगह शरद पूर्णिमा व्रत को कोज़गारी व्रत/पूजा के नाम से जाना जाता है | इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं | कोजागरी का मतलब होता है कौन जाग रहा है। ऐसा माना जाता है की माँ लक्ष्मी विचरण करते हुए पूछती है कौन जाग रहा है , जो जाग रहा होता है , उसे माँ लक्ष्मी धन धान्य से परिपूर्ण करती है।


शरद पूर्णिमा की कथा :-

एक साहूकार था उसकी दो बेटिया थी। वह दोनों पूर्णिमा का व्रत करती थी। बड़ी बेटी व्रत पूरा करती थी ओर छोटी बेटी अधूरा व्रत करती थी।

साहूकार ने दोनों बेटियो का धूमधाम से विवाह किया। कुछ समय पश्चात दोनों गर्भवती हुई और दोनों ने बच्चो को जन्म दिया परन्तु छोटी बेटी के संतान होते ही मर गयी। इसके बाद भी छोटी बेटी के जब भी संतान होती , होते ही मर जाती थी।


छोटी बेटी संतान की मृत्यु से बहुत दुखी हो गयी उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो पंडितो ने बताया की तुम अधूरा व्रत करती हो जिसके कारण तुम्हारी संतान नहीं बचती हैं। अगर तुम पूर्णिमा का पूरा व्रत विधि पूर्वक करोगी तो तुम्हारी संतान जीवित रहेगी।

पंडितो के कहे अनुसार उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत विधि पूर्वक किया । इससे उसे लड़का हुआ परंतु तुरन्त ही मर गया। उसने लड़के को पीढ़े पर लेटाया और चादर से उड़ा कर अपनी बड़ी बहन के पास गयी और उसे बुला कर लायी।

बहन को उसी पीढ़े पर बैठने को कहा । बहन जैसे ही पीढ़े पर बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे को छू गया ,घाघरा छूते ही बच्चा जीवित हो गया और रोने लगा।

तब बड़ी बहन छोटी बहन से बोली –” तू मुझ पर कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता ”

तब छोटी बहन बोली ,” यह तो पहले से ही मृत था। तेरे पुण्य से जीवित हो गया ”

तेरे भाग्य से इसका पुनर्जीवन हुआ हैं। ”

बच्चे की आवाज़ सुनकर छोटी बहन बहुत खुश हुई उसने अपनी बड़ी बहन से कहा –

तू पूरा व्रत करती थी और मैं अधूरा व्रत करती थी इसीलिए तेरे ऊपर हमेशा भगवान की कृपा हुई और मैं हमेशा अधूरा व्रत करती थी इसीलिये मुझे दोष लगा और मेरी संतान जीवित नहीं रहती थी।

आज तेरे भाग्य से मेरी संतान जीवित हो गयी। उसने पूरे गाँव में ढिंढोरा पिटवा दिया की जो कोई भी व्रत करे वह पूरा व्रत करे अधूरा न करे।

शरद पूर्णिमा की विधि-विधान 

इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और जितेन्द्रिय भाव से रहे। धनवान व्यक्ति ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए दीपक जलाए। फिर घी मिश्रित खीर बनायें और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमाँ की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर (३ घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक निर्धनों और दीन-बन्धुुुओं को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएँ और उनके साथ ही माङ्गलिक गीत गाकर तथा मङ्गलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें। तदनन्तर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा किसी दीन दुःखी को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी।

इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अन्त होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।


शरद पूर्णिमा की खीर का महत्व… 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा 16 कलाओं से पूर्ण होकर आलोकित होता है. इस वजह से उसकी किरणों में अमृत के समान औषधीय गुण होते हैं. जब हम शरद पूर्णिमा की रात खीर को खुले आसमान के नीचे रखते हैं तो उसमें चंद्रमा की किरणें पड़ती हैं, जिससे वह खीर औषधीय गुणों वाला हो जाता है. खीर की सामग्री दूध, चावल और चीनी तीनों ही चंद्रमा से जुड़ी वस्तुएं हैं, इसके सेवन से स्वास्थ्य लाभ तो होता ही है, कुंडली का चंद्र दोष निवारण भी होता है.


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