बुधवार, 4 सितंबर 2024

भाग्य का खाना

  

भाग्य का खाना


एक घर के मुखिया को यह अभिमान हो गया कि उसके बिना उसके परिवार का काम नहीं चल सकता।


उसकी छोटी सी दुकान थी। उससे जो आय होती थी, उसी से उसके परिवार का गुजारा चलता था।


चूंकि कमाने वाला वह अकेला ही था इसलिए उसे लगता था कि उसके बगैर कुछ नहीं हो सकता। वह लोगों के सामने डींग हांका करता था।


एक दिन वह एक संत के सत्संग में पहुंचा। संत कह रहे थे, दुनिया में किसी के बिना किसी का काम नहीं रुकता।


यह अभिमान व्यर्थ है कि मेरे बिना परिवार या समाज ठहर जाएगा। सभी को अपने भाग्य के अनुसार प्राप्त होता है।


सत्संग समाप्त होने के बाद मुखिया ने संत से कहा, 'मैं दिन भर कमाकर जो पैसे लाता हूं उसी से मेरे घर का खर्च चलता है। मेरे बिना तो मेरे परिवार के लोग भूखे मर जाएंगे।'


संत बोले, 'यह तुम्हारा भ्रम है। हर कोई अपने भाग्य का खाता है।'


इस पर मुखिया ने कहा, 'आप इसे प्रमाणित करके दिखाइए।'


संत ने कहा, 'ठीक है। तुम बिना किसी को बताए घर से कुछ महीने के लिए गायब हो जाओ।' उसने ऐसा ही किया।


संत ने यह बात फैला दी कि उसे बाघ ने खा लिया है।


मुखिया के परिवार वालों ने कई दिनों तक शोक मनाया। गांव वाले आखिरकार उनकी मदद के लिए सामने आए।


एक सेठ ने उसके बड़े लड़के को अपने यहां नौकरी दे दी। गांव वालों ने मिलकर लड़की की शादी कर दी। एक व्यक्ति छोटे बेटे की पढ़ाई का खर्च देने को तैयार हो गया।


कुछ महीने बाद मुखिया छिपता-छिपाता रात के वक्त अपने घर आया। घर वालों ने भूत समझकर दरवाजा नहीं खोला।


जब वह बहुत गिड़गिड़ाया और उसने सारी बातें बताईं तो उसकी पत्नी ने दरवाजे के भीतर से ही उत्तर दिया...


हमें तुम्हारी जरूरत नहीं है। अब हम पहले से ज्यादा सुखी हैं। यह सुनकर उस व्यक्ति का सारा अभिमान उतर गया,.......


भावार्थ ... संसार किसी के लिए भी नही रुकता ... यहाँ सभी के बिना काम चल सकता है इस संसार को चलाने वाला परमात्मा है...


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