बुधवार, 17 जुलाई 2024

क्या आपको पता है ? देवशयनीं एकादशी को देवशयनी क्यों कहते है? आइये जानते है इसकी महिमा और महत्व ...


देवशयनी एकादशी व्रत कथा और महत्व

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया। अत: उसी दिन से आरम्भ करके भगवान चार मास तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं।
पुराण के अनुसार यह भी कहा गया है कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। दूसरे पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। बलि के बंधन में बंधा देख उनकी भार्या लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान से बलि को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया। तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता ४-४ माह सुतल में निवास करते हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक निवास करते हैं


देवशयनी एकादशी व्रत कथा

धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा: हे केशव! आषाढ़ शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत के करने की विधि क्या है और किस देवता का पूजन किया जाता है? श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था वही मैं तुमसे कहता हूँ।


एक बार देवऋषि नारदजी ने ब्रह्माजी से इस एकादशी के विषय में जानने की उत्सुकता प्रकट की, तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया: सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। किंतु भविष्य में क्या हो जाए, यह कोई नहीं जानता। अतः वे भी इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला है।


उनके राज्य में पूरे तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा। इस अकाल से चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। धर्म पक्ष के यज्ञ,हवन,पिंडदान,कथा-व्रत आदि में कमी हो गई। जब मुसीबत पड़ी हो तो धार्मिक कार्यों में प्राणी की रुचि कहाँ रह जाती है। प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी वेदना की दुहाई दी।


राजा तो इस स्थिति को लेकर पहले से ही दुःखी थे। वे सोचने लगे कि आखिर मैंने ऐसा कौन-सा पाप-कर्म किया है, जिसका दंड मुझे इस रूप में मिल रहा है? फिर इस कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन करने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए।


वहाँ विचरण करते-करते एक दिन वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुँचे और उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। ऋषिवर ने आशीर्वचनोपरांत कुशल क्षेम पूछा। फिर जंगल में विचरने व अपने आश्रम में आने का प्रयोजन जानना चाहा।


तब राजा ने हाथ जोड़कर कहा: महात्मन्‌! सभी प्रकार से धर्म का पालन करता हुआ भी मैं अपने राज्य में दुर्भिक्ष का दृश्य देख रहा हूँ। आखिर किस कारण से ऐसा हो रहा है, कृपया इसका समाधान करें।


यह सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा: हे राजन! सब युगों से उत्तम यह सतयुग है। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है।


इसमें धर्म अपने चारों चरणों में व्याप्त रहता है। ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार नहीं है जबकि आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। यही कारण है कि आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। जब तक वह काल को प्राप्त नहीं होगा, तब तक यह दुर्भिक्ष शांत नहीं होगा। दुर्भिक्ष की शांति उसे मारने से ही संभव है।


किंतु राजा का हृदय एक नरपराध शूद्र तपस्वी का शमन करने को तैयार नहीं हुआ।

उन्होंने कहा: हे देव मैं उस निरपराध को मार दूँ, यह बात मेरा मन स्वीकार नहीं कर रहा है। कृपा करके आप कोई और उपाय बताएँ।

महर्षि अंगिरा ने बताया: आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी।


राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए और चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।


ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन किया गया है। इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।


पूजा विधि

स्नान और संकल्प- व्रत करने वाले व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद, भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें।

मंदिर की सजावट- घर के मंदिर को स्वच्छ करें और भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को गंगाजल से स्नान कराएं। उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं और सुंदर फूलों से सजाएं।

पूजा सामग्री- पूजा के लिए चंदन, तुलसी पत्र, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, पंचामृत, फल, और पीले फूलों का उपयोग करें।

पूजा विधान- भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष दीप प्रज्वलित करें और धूप, दीप, चंदन, पुष्प आदि अर्पित करें। भगवान विष्णु को पंचामृत और फल का नैवेद्य अर्पित करें। विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ करें।


देवशयनी एकादशी का व्रत

देवशयनी एकादशी के दिन श्रीहरि नारायण विष्‍णु शयन करते हैं और सभी तरह के मांगलिक कार्य 4 माह के लिए बंद हो जाते है। अतः श्रीहरि को समर्पित यह पर्व यानि देवशयनी एकादशी वर्ष 2024 में 17 जुलाई, दिन बुधवार को मनाई जाएगी। इस दिन से श्रीहरि चार माह के लिए शयननिद्रा में चले जाएंगे। देवशयनी या हरिशयनी एकादशी मनाई जा रही है। इस व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

 देवशयनी एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत और पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस एकादशी के व्रत से विशेष रूप से शनि ग्रह के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।


देवशयनी एकादशी का महत्व

ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन किया गया है। इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। यह एकादशी आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे योगिनी एकादशी कहते हैं, के बाद आती है।


 हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन देवशयनी एकादशी मनाई जाती है, जो कि कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी 4 माह तक श्री विष्णु जी का शयनकाल माना जाता है। इस एकादशी के दिन पीपल में जल अर्पित करना चहिए तथा भगवान विष्णु को शयन कराने के पूर्व खीर, पीले फल और पीले रंग की मिठाई का भोग अवश्य ही लगाना चहिए। 

 

आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी/ हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन से संसार के पालनहार श्रीहरि भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं होते हैं, क्योंकि यह समय चातुर्मास का होता है। 

 

हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार इस दौरान साधु-संत एक ही स्थान पर निवास करके प्रभु की साधना करते हैं, उनका भ्रमण बंद हो जाता है। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि की विधिवत पूजन से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। शुद्ध और निर्मल मन होने के साथ ही सभी तरह के विकार दूर हो जाते हैं। इस व्रत से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा मृत्यु पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।



#आत्मनिरीक्षण, #भगवान, #सफलताएँ, #धर्मिककथा, #अनसुनीधर्मिककहानियाँ, #शिक्षाप्रदकहानी, #बालकहानियां, #पंचतंत्र, #हितोपदेश, #प्रेरणादायककहानी, #प्रेरककहानी, #कथा, #कहानी, #हिन्दूधर्म, #सनातनधर्म, #श्रीराम, #अयोध्या, #श्रीकृष्ण, #राधारानी, #मथुरा, #वृन्दावन, #बरसाना, #यमुना, #सरयू, #गंगा, #नर्मदा, #गोदावरी, 

जानिए क्यों आज का दिन इतना शुभ 
देवशयनी एकादशी की व्रत कथा उसका महत्त्व 
क्या है? देवशयनीं एकादशी के पीछे की कहानी और इसकी की महिमा  
देवशयनीं एकादशी को देवशयनी क्यों कहते है? आइये जानते है इसकी महिमा और महत्व। ... 
क्या आपको पता है ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

THANK YOU

Impotant

रोचक कहानी संपत्ति बड़ी या संस्कार

       दक्षिण भारत में एक महान सन्त हुए तिरुवल्लुवर। वे अपने प्रवचनों से लोगों की समस्याओं का समाधान करते थे। इसलिए उन्हें सुनने के लिए दूर-...