सोमवार, 17 जून 2024

निर्जला एकादशी की संक्षेप मे जानकारी...

निर्जला एकादशी



 हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर २६ हो जाती है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते है इस व्रत मे पानी का पीना वर्जित है इसिलिये इस निर्जला एकादशी कहते है।


सबसे महत्वपूर्ण है निर्जला एकादशी

साल में चौबीस एकादशी पड़ती हैं, जबकि अधिक मास में इसकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। उपवास के कठोर नियमों के कारण इनमें सबसे महत्वपूर्ण है ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी व्रत, जिसमें भक्त न अन्न ग्रहण करते हैं और न भीषण गर्मी में जल ग्रहण करते हैं। इसलिए इस एकादशी को निर्जला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह प्रायः मई या जून महीने में गंगा दशहरा के अगले दिन पड़ती है। हालांकि कभी कभार गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी एक ही दिन पड़ जाती है। बहरहाल, मान्यता है कि जो श्रद्धालु साल की सभी चौबीस एकादशियों का उपवास करने में समर्थ न हों, उन्हें सिर्फ निर्जला एकादशी उपवास करना चाहिए। इससे दूसरी सभी एकादशियों का पुण्यफल मिल जाता है।


निर्जला एकादशी को क्यों कहते हैं भीमसेनी एकादशी

पौराणिक कथा के अनुसार पांडवों में दूसरे बड़े भाई भीमसेन के लिए अपनी भूख को नियंत्रित करना काफी मुश्किल था। इस कारण वो एकादशी व्रत नहीं कर पाते थे। जबकि भीम के अलावा द्रौपदी समेत बाकी पांडव हर एकादशी व्रत को रखते थे। भीमसेन अपनी इस लाचारी और कमजोरी को लेकर परेशान थे। भीमसेन को लगता था कि वह एकादशी व्रत न करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहे हैं। इस दुविधा से उबरने के लिए भीमसेन महर्षि व्यास के पास गए, यहां महर्षि व्यास ने भीमसेन को साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत रखने की सलाह दी और कहा कि निर्जला एकादशी साल की चौबीस एकादशियों के तुल्य है। इसी पौराणिक कथा के बाद निर्जला एकादशी भीमसेनी एकादशी, भीम एकादशी और पांडव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गई।


एकादशी व्रत में क्या करें

एकादशी व्रत के दिन दिनचर्या शुरू करे मुख शुद्धि आदि के बाद स्नान कर मंदिर में जाकर गीता-पाठ करना चाहिए या पुरोहित से भगवतगीता का पाठ सुनना चाहिए। साथ ही भगवान के सम्मुख इस प्रकार प्रण करना चाहिए – आज मैं दुराचारी, चोर और पाखण्डी व्यक्ति से वार्ता-व्यवहार नहीं करूंगा। किसी से कड़वी बात कर उसका दिल नहीं दुखाऊंगा। गाय, ब्राह्मण आदि को फलाहार औरअन्न आदि देकर प्रसन्न करूंगा। रात्रि जागरण कर कीर्तन करूंगा, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करूंगा। राम, कृष्ण इत्यादि विष्णु सहस्रनाम को कण्ठ का आभूषण बनाऊंगा।”

इस संकल्प के बाद श्रीहरि भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करना चाहिए, कहना चाहिए – “हे तीनों लोकों के स्वामी! मेरे प्रण की रक्षा करना। मेरी लाज आपके हाथ है, इस प्रण को पूरा कर सकूं, ऐसी शक्ति मुझे देना प्रभु!”

यदि भूलवश किसी निंदक से बात कर बैठें तो इस दोष के निवारण के लिए भगवान सूर्य नारायण के दर्शन करके, धूप-दीप से श्रीहरि की पूजा-अर्चना कर क्षमा याचना करें।

एकादशी वाले दिन यथाशक्ति अन्नदान करना चाहिए, लेकिन स्वयं किसी का दिया अन्न कदापि न लें।

असत्य वचन और कपटादि कुकर्मों से दूर रहना चाहिए।

किसी संबंधी की मृत्यु होने पर उस दिन एकादशी व्रत रखकर उसका फल उसे संकल्प कर देना चाहिए और श्री गंगाजी में पुष्प (अस्थि) प्रवाह करने पर भी एकादशी व्रत रखकर फल प्राणी के निमित्त दे देना चाहिए।

प्राणी मात्र को प्रभु का अवतार समझकर किसी प्रकार का छल-कपट नहीं करना चाहिए। सभी से मीठे वचन बोलने चाहिए। अपना अपमान करने या कड़वे शब्द बोलने वाले को भी आशीर्वाद देना चाहिए।

सन्तोष का फल सदैव मीठा होता है। सत्य वचन बोलने चाहिए और मन में दया भाव रखना चाहिए। इस विधि से व्रत करने वाला मनुष्य दिव्य फल को प्राप्त करता है। 


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निर्जला एकादशी की संक्षेप मे जानकारी 

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