एक किसान के पास बहुत सारे पिल्ले थे, तो वह कुछ पिल्लो को बेचना चाहता था| उसने घर के बाहर बिक्री का बोर्ड लगा दिया| एक दिन दस साल का बच्चा किसान के दरवाजे पर आया और बोला - मैं एक पिल्ला खरीदना चाहता हूँ| आप एक पिल्ला कितने रूपये में देंगे ?
किसान ने कहा - एक पिल्ला दौ सौ रूपये का है|
यह सुनकर वह लड़का बोला - मेरे पास अभी तो केवल सौ रूपये है| बाकी कीमत मैं आपको हर महीने 25 रूपये देकर चुकाऊंगा| क्या आप मुझे पिल्ला देंगे ?
किसान ने सौ रूपये लिए और पिल्लो को बुलाने के लिए सीटी बजायी| चार छोटे – छोटे पिल्ले बाहर आ गये| बच्चे ने एक पिल्ले को सहलाया| अचानक उसकी नजर पांचवे पिल्ले पर पड़ी| वह लंगडाकर चल रहा था |
"मुझे वह पिल्ला चाहिए" बच्चे ने कहा |
किसान बोला - लेकिन वह तो तुम्हारे साथ खेल भी नहीं पायेगा| इसका तो एक पैर ख़राब है |
कोई बात नहीं, मुझे वही पिल्ला पसंद है| मुझे इसी की जरुरत है, बच्चा बोला
तब तुम इसे ले जाओ| इसके दाम देने की आवश्यकता नहीं है – किसान बोला -
नहीं यह पिल्ला भी उतना ही महत्वपूर्ण है और मैं आपको इसकी पूरी कीमत दूंगा, बच्चा बोला
लेकिन तुम्हे यह पिल्ला क्यों चाहिए ? जबकि इतने सारे और पिल्ले भी है- किसान बोला !
ताकि उसका दर्द समझने और बांटने वाला भी कोई हो| ताकि वो दुनिया में खुद को अकेला न समझे| कहकर बच्चे ने पिल्ला उठाया और वापस चल दिया |
जब वह लड़का जाने लगा तब किसान ने देखा| वह बच्चा भी एक पैर से लंगड़ा है विशेष जूता पहने था| किसान सोचने लगा की एक ‘घायल की गति घायल ही जान सकता है |
लड़के ने उस लंगड़े पिल्ले को इसलिए ख़रीदा क्योंकि वह उस पिल्ले के दुःख को जानता था| वह लड़का स्वयं भी एक पैर से लंगड़ा था| इसलिए उसने स्वस्थ और खुबसूरत पिल्ले लेने के बजाय लंगड़े हुए पिल्ले को चुना| दुःख तो हमारे जीवन का सबसे बड़ा रस है |
जिसे जीवन में दुःख नहीं मिला उसे सुख की अनुभूति भला क्या होगी| जो स्वयं दुःख का अनुभव करता है वही दूसरे के दुःख को पहचान पाता है| यही मानवता का सबसे बड़ा गुण है|
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