गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

जानिए आखिर कैसे? गीता जी के एक फटे हुए पन्ने ने चुड़ैल से बचाई जान.......

गीताजी का प्रभाव



एक सिपाही था। उसका तबादला नजदीक के एक गाँव में हुआ और वह वहाँ एक कमरा किराये पर लेकर रहने लगा।


एक बार रात के समय वह अपने कमरे में आ रहा था। रास्ते में चंद्रमा की चाँदनी में उसने एक सुंदर नवयुवती को एक पेड़ के नीचे उदास बैठे हुए देखा।


सिपाही ने जब उससे बातचीत की, तब उसने बताया कि उसके पति से उसका झगड़ा हो गया है।उसका यहाँ अपना कोई नहीं है, इसलिए वह अकेली बैठी है।


उस युवती के पूछने पर कि क्या वह उसके साथ आ सकती है..??  सिपाही उसे नहीं जानता था, फिर भी कह दिया - हाँ ! आ जाओ। तब वह युवती उसके पीछे-पीछे उसके कमरे में आ गई।


इस तरह वह युवती रोज रात में सिपाही के पास आती, उसका संग करती और सवेरा होने के पहले ही चली जाती थी।


इस तरह वह युवती सिपाही का शारीरिक शोषण करती थी, उसका खून चूसती और उसकी शक्ति क्षीण करने लगी थी।


एक रात को एक घटना हुई कि वे दोनों सो रहे थे और लालटेन जलती रह गई थी। सिपाही ने उस युवती से कहा कि जरा लालटेन तो बुझा दो। लेेटे-लेटे ही उस युवती ने अपना एक हाथ लंबा किया और लालटेन को बुझा दिया।


सिपाही ने ज्यों ही उसके लंबे होते हुए हाथ को देखा तो उसके पसीना छूट गया और वह घबरा कर डर के मारे उठ कर बैठ गया।


सिपाही के बहुत पूछने पर उस युवती ने बताया कि वह साधारण स्त्री नहीं है.. बल्कि एक 'चुड़ैल' है। 


साथ ही उसने उसे यह भी धमकी दी कि यदि यह बात किसी को बता दी तो वह उसे जिन्दा नहीं छोड़ेगी और मार डालेगी, क्योंकि उसने 'आ जा..' ऐसा कह कर उसे अपना लिया था।


सिपाही का शरीर दिन-ब-दिन सूखने लगा। उसके साथ वालों ने उससे बहुत ही पूछा कि तुम्हारा यह हाल क्यों हो रहा है, लेकिन डर के मारे वह किसी को भी कुछ भी बताता नहीं था।


एक दिन वह किसी वैद्यजी के पास गया। वैद्यजी ने सिपाही को कुछ दवा एक कागज के पुड़िया में बाँध कर दे दी, जिसे उसने अपनी जेब में रख लिया।


रोज की तरह ही रात्रि को वह चुड़ैल आई और कमरे के बाहर से ही बोलने लगी कि सिपाहीजी ! तुम्हारी जेब में जो कागज की पुड़िया है, उसे बाहर फेंक दो, तब मैं अंदर आऊँगी।


पुड़िया को फेंक देने की बात बार-बार कहने पर सिपाही को यह विश्वास हो गया कि पुड़िया में जरूर कोई करामात है, तभी तो यह चुड़ैल मेरे पास नहीं आ रही है। उसने वह पुड़िया नहीं फेंका।


चुड़ैल हार-थक कर वापस चली गई। सिपाही ने जेब से पुड़िया निकाला तो देखा कि वह कागज 'गीता' का फटा हुआ एक पन्ना था।


सिपाही को बात समझते देर नहीं लगी कि यह तो गीताजी का ही प्रभाव है कि वह चुड़ैल डर के मारे भाग गई।


अब वह हमेशा अपनी जेब में गीताजी रखता था और निर्भय होकर, स्वस्थ होकर, स्वछन्द विचरण करता था।


रोजाना गीता पाठ के लाभ

जो व्यक्ति नियमित रूप से भगवत गीता का पाठ करता है उसका मन हमेशा शांत रहता है। वितरित परिस्थियों में भी वह अपने मन पर काबू पाने की क्षमता रखता है। वह जैसे चाहे अपने मन को कार्य में ले सकता है।


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