गुरुवार, 21 मार्च 2024

वृंदावन मे भक्ति इसलिए हमेशा चरम पर होती है क्योकि.......

  

वृंदावन मे भक्ति


एक बार नारद जी पृथ्वी का भ्रमण कर रहे थे तो नारद जी सभी तीर्थो मे गये लेकिन कहीं पर भी नारद जी को शांति नही मिली -


ये सब कलियुग का प्रभाव था क्योकि तीर्थो मे भी लोगो ने गंदगी फैलानी शुरु कर दी है इसलिए नारद जी का मन को कहीं शांति नही मिली

जब नारद जी को कहीं शांति नही मिली तो नारद जी श्रीधाम वृंदावन आ गये-- 


श्रीधाम वृंदावन मे आकर नारद जी को कुछ शांति महसुस हूई ओर जब नारद जी यमुना तट पर भ्रमण कर रहे थे तो पीछे से एक स्त्री की आवाज आयी की -


अरे साधु रुको,,-

नारद जी ने पीछे मुडकर देखा तो नारद जी ने देखा की एक स्त्री बैठी है ओर उसकी गोद मे दो वृद्ध पुरुष लेटे है--


नारद जी उस स्त्री के पास गये ओर पुछने लगे की -- आप कौन है ?? 

ओर आपकी गोद मे ये दो वृद्ध पुरुष कौन है  ??


उस स्त्री ने कहा की हे महात्मा,मै भक्ति हूं ओर मेरी गोद मे ये दोनो मेरे बेटे ज्ञान ओर वैराग्य है-

मै द्रविड देश मे पैदा हुई ,

कर्नाटक में जवान हुई ,गुजरात मे वृद्ध हो गयी लेकिन जब वृन्दावन आयी तो मै तो जवान हो गयी लेकिन मेरे बेटे वृद्ध हो गये--

जब मां जवान हो ओर बेटे वृद्ध हो जाएं तो दुख क्यो नही होगा---

हे नारद जी अब कारण बताओ की एसा क्यो हुआ ओर उपाय भी बताओ ?

नारद जी ने जब ये सुना तो नारद जी बोले की--


 वृंदावनस्यसंयोगा नुतस्तवं तरुणी नवां--

धन्यं वृंदावन तेन भक्ति नृत्यति यत्र च--


नारद जी बोले की हे भक्ति.!!

तुम वृंदावन मे आकर जवान हो गयी हो क्योकि वृंदावन भक्ति की भुमि है ,वृंदावन तो तुम्हारा घर है--


बिलकुल सही कह रहे है नारद जी क्योकि आज भी वृंदावन मे कण कण मे भक्ति ,कण -कण मे प्रेम है-


वृंदावन मे तो रिक्शावाला भी राधे राधे बोलता है ओर जगह-जगह नाम संकीर्तन चलता रहता है-- इस श्लोक मे जरा गौर करें की इसमे लिखा है की भक्ति नृत्यति यत्र च-- भक्ति का वृंदावन मे नृत्य होता है---


वास्तव मे भक्ति कोई स्त्री नही है बल्कि भक्ति तो ह्रदय का भाव है--

ओर गुरुजी ने कथा मे बताया भी था की बहुत लोग प्रश्न करते है की वृंदावन की कौन सी गलि मे भक्ति नाचती है ?


गुरुजी बोले की -- वृंदावन जाना ओर बिहारी जी का दर्शन करना, अगर बिहारी जी का दर्शन करके तुम्हारा ह्रदय मस्ती से झुमने लगे तो समझना की भक्ति तुम्हारे ह्रदय मे नाच रही है---


ओर ये सत्य ही है की वृंदावन का कण कण भक्तिमय है --

जिसके लगन सच्ची होती है,,जिनका बिहारी जी के प्रति प्रेम बहूत गहरा होता है उनका ह्रदय भी वृंदावन ही बन जाता है ओर जहां जहां कथा होती है 


वहां का कथा पंडाल भी वृंदावन ही बन जाता है क्योकि स्थान चाहे कोई भी हो लेकिन जहां भागवत जी आकर बैठ जाए,वो स्थान तो साक्षात् वृंदावन ही बन जाता है---


इसलिए नारद जी ने भक्ति से कहा की आप वृंदावन मे आकर जवान हो गयी हो क्योकि वृंदावन आपका घर है ओर यहां कण कण मे प्रेम बसा है--


उसके बाद नारद जी ने कहा की कलियुग के प्रभाव के कारण तुम्हारे दोनो बेटो की ये दुर्दशा हो गयी है--


लोग ज्ञान ओर वैराग्य की बडी बडी बाते तो जरुर करते है लेकिन उस ज्ञान को जीवन मे नही उतार पाते--


एक प्रसंग गुरुजी कथा मे अक्सर सुनाते है की एक व्यक्ति बहुत सारा पैसा लेकर एक बाबा के पास गया ओर बोला की बाबा आप ये पैसा रख लो ओर मेरी तरफ से सेवा मे लगा देना--


बाबा जी बोले की- अरे तेरी ईतनी औकात की तू मुझे पैसा दिखा रहा है,क्या तुझे मालुम है की मै पैसे को छुता भी नही हूं---


वो व्यक्ति डर गया ओर बोला की महाराज आप क्रोध ना करें मै पैसो को वापिस ले जाता हूं---


बाबा जी बोले की-- अरे रुक,, मै पैसो को छूता नही हूं लेकिन ये पैसे मेरे पट्टे मे बांध दे--


लोग ज्ञान की बाते तो बहुत करते है लेकिन जीवन मे धारण नही कर पाते--


इसलिए नारद जी ने कहा की हे भक्ति.!कलियुग के प्रभाव से तुम्हारे बेटो की ये दुर्दशा हुई है--

नारद जी ने उन दोनो को वेद सुनाए,,उपनिषद् सुनाए,गीता सुनाई लेकिन वो दोनो अचेत अवस्था मे ही मुर्च्छित पडे रहे--


नारद जी को दुख हुआ की अब मै कैसे इन दोनो को स्वस्थ करूं--


नारद जी के अंदर दयाभाव है लेकिन कलियुग मे लोगो के अंदर दया खत्म होती जा रही है- लोग दुसरो का नुकसान ही सोचते रहते है --


नारद जी भक्ति के दुख को देखकर दुखी हुए ओर नारद जी ने कहा की आप चिंता मत कतो बल्कि प्रभु का चिंतन करो क्योकि चिंता से समस्या हल नही होगी बल्कि चिंतन से समस्या हल होगी--


नारद जी के प्रयास के बावजुद भी जब वो दोनो खडे नही हुऐ तो आकाशवाणी हूई की सत्कर्म करो,सत्कर्म करो,,सत्कर्म करो---


नारद जी ने सोचा की मैने वेद,उपनिषद्,गीत सुनाई इनसे बडा सत्कर्म ओर क्या होगा- नारद जी सोचते हुए जा रहे थे की सत्कर्म क्या है तो उसी समय ब्रह्मा के चारो पुत्र सनक सनंदन सनातन सनतकुमार नारद जी से मिले--


नारद जी ने सारी बात बताई ओर पूछा की वो सत्कर्म क्या है--

उन ऋषियो ने कहा की तुम उनको श्रीमद्भागवत का श्रवण कराओ --


श्रीमद्भागवत ही सत्कर्म है-

एक बात ध्यान मे जरुर रखनी चाहिये की जो लोग दुसरो की सहायता के लिए आगे बढते है तो भगवान भी उनका साथ देते है--


नारद जी भक्ति के दुख को दूर करने के लिए उस सत्कर्म के विषय मे सोचते हुए जा रहे थे तो भगवान की कृपा से नारद जी को मार्ग मे ब्रह्ना के चारो पुत्र मिल गये--


उसके बाद नारद जी ने श्रीमद्भागवत का आयोजन किया ओर ब्रह्मा के चारो पुत्रो को वक्ता बनाया गया--


बडे बडे ऋषि मुनि उस कथा मे पहुचें ओर दूर दूर से लोग आने लगे--- 


बहुत लोग तो एसे होते है जो कथा पंडाल के पास रहकर भी कथा मे नही जा पाते ओर कुछ लोग एसे होते है जो बहूत दुर रहकर भी कथा मे पहूंच जाते है-


बिहारी जी की कृपा से ही सत्संग मिलता है ओर जिसको मिलता है वो भाग्यशाली है-

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