चंद्र - ग्रहण
28 अक्टूबर 2023 शनिवार
साल का अंतिम चंद्र ग्रहण प्रारंभ समय: 28 अक्टूबर, देर रात 01:06 बजे…
चंद्र ग्रहण समापन समय: 28 अक्टूबर, मध्य रात्रि 02:22 बजे
सूतक काल का समय: 28 अक्टूबर, दोपहर 02:52 बजे से लेकर मध्य रात्रि 02:22 बजे तक…
चंद्रग्रहण सिर्फ और सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण घटना है। साल का अंतिम चंद्रग्रहण शरद पूर्णिमा के दिन लगने जा रहा है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण रहता है ऐसे में इस दिन ग्रहण लगना बेहद महत्वपूर्ण रहने वाला है। इस साल का अंतिम चंद्रग्रहण मेष राशि में लगने जा रहा है। ग्रहण का असर सभी राशियों पर दिखाई देने वाला है।
चंद्र-ग्रहण का समय-:
चंद्रग्रहण 28 अक्टूबर 2023, शनिवार देर रात 1 बजकर 5 मिनट से लेकर 2 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। यानी यह ग्रहण 1 घंटा 18 मिनट का रहेगा। इस चंद्र ग्रहण का सूतक काल भारत में मान्य होगा।
ग्रहण सूतक काल समय-:
चंद्रग्रहण का सूतक काल ग्रहण के 9 घंटे पूर्व से शुरु हो जाता है अतः भारतीय समय अनुसार, चंद्रग्रहण का सूतक शाम में 4 बजकर 5 मिनट पर आरंभ हो जाएगा। इस ग्रहण में चंद्रबिम्ब दक्षिण की तरफ से ग्रस्त होगा।
ग्रहण काल में अनुष्ठान पूजा पाठ करने की शास्त्रोक्त व्यवस्था:-
"ग्रस्यमाने भवेत्स्नानं ग्रस्ते होमो विधीयते।
मुच्यमाने भवेद्दानं मुक्तौ स्नानं विधीयते।।"
(वृद्ध वसिष्ठ)
सूर्येन्दु -ग्रहणं यावत्तावत् कुर्याज्जपादिकम्।।
(शिव रहस्ये)
ग्रहणकाल शुरू होते ही तत्काल सचैल ( वस्त्र सहित स्नान ) करने के उपरान्त शुद्ध वस्त्र धारण करने के उपरान्त पूजन पाठ से सम्बन्धित देवी देवता का ध्यान करके ध्यान करके मानसिक पूजा एवं धूप, दीप करने के उपरान्त पाठ, जप हवन इत्यादि अनेक प्रकार के मंत्र साधनाओं से सम्बन्धित अनुष्ठान पूजा पाठ सिद्धि कुछ भी कर सकते हैं। ग्रहण समाप्ति के बाद पुनः सचैल स्नान करना चाहिए।
विशेष ध्यान दें:- ग्रहणकाल प्रारम्भ होने में सचैल स्नान ग्रहणकाल में जप पूजा पाठ होम मुक्त काल में दान व ग्रहण मुक्त होने के बाद स्नान करना अनिवार्य आवश्यक कर्म है। सभी सनातन धर्मावलंबी जनों को ध्यानपूर्वक यह कार्य अवश्य करना चाहिए। बाल, वृद्ध, रोगी के लिए कोई नियम लागू नहीं होता है।। शास्त्रों में इनके लिए छूट दी गई है।।
ग्रहणकाल में दूषित अन्न व अदूषित ख़ाद्य पदार्थ की शास्त्रीय व्यवस्था:-
"सर्वेषामेव वर्णानां सूतकं राहुदर्शने।
स्नात्वा कर्माणि कुर्वीत शृतमन्नं विवर्जयेत्।।"
विशेष ध्यान दें :-
पका हुआ अन्न, कटी हुई सब्जी, व कटे हुए फल ग्रहणकाल में दूषित हो जाते हैं।
ये शास्त्रों में वर्णित परिहार पदार्थ डाल देने से भी अर्थात तिल, कुश, तुलसी पत्र डालने से भी शुद्ध (ग्रहण करने योग्य) नहीं होते हैं।
अन्न को यदि ग्रहणकाल के पूर्व या सूतक काल के पूर्व ही क्यों न पकाया गया हो ग्रहणकाल में तिल, कुश डालने के बाद भी ग्रहणकाल के बाद खान-पान के योग्य कदापि नहीं हो सकता है।।
कौन कौन से पदार्थ ग्रहण काल के बाद खान-पान योग्य हो सकते हैं:-
सूतक काल ,ग्रहणकाल के पूर्व तेल या घी में पका हुआ (तला हुआ) अन्न , घी, तेल , दूध, दही, लस्सी, मक्खन, पनीर, अचार चटनी, कांजी, सिरका, मुरब्बा में तिल या कुशा रख देने से ये ग्रहणकाल में भी दूषित नहीं होते हैं।
वारि-तक्रारनालादि तिल -दर्भैर्न दुष्यति।।
(मन्वर्थ मुक्तावलि)
उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध हो जाता है कि इस वर्ष ग्रहणकाल शरद पूर्णिमा में पड़ने के कारण शरद पूर्णिमा को को रात्रि में खुले आसमान में रखी जाने वाली गौ दुग्ध खीर सूतक काल से पहले भी बनाकर रख देने के बावजूद तथा परिहार स्वरूप कुश, तिल, तुलसी पत्ती आदि कुछ भी डालने से ग्रहणकाल के बाद भी आसमान में रखने से खाने योग्य शास्त्र सम्मत आदेशानुसार नहीं हो सकती है।
अब जबरजस्ती किसी को खाना है। तो हम रोक नहीं सकते हैं।
तुलसी पत्ती डालने का प्रमाण हमें नहीं मिला है। लेकिन हर घर परिवार में तुलसी पत्ती होने से ऐसा प्रचलित है।
शास्त्रों में तिल कुश डालने का प्रमाण आधार मिलता है।तुलसी पत्ती का नहीं। यह भी ध्यान रखें।।
सूखे खाद्यान्न (गेहूं ,चना,दाल, चावल ,आटा,आलू प्याज, लहसुन, टमाटर सब्जी, फल ) ये प्रदूषित नहीं होते हैं। इनमें तिल या कुशा रखने की आवश्यकता नहीं होती है।।
ग्रहणकाल में श्राद्ध करने का भी विशेष माहात्म्य है। लेकिन पिण्ड रहित श्राद्ध करने का विधान शास्त्रों में वर्णित किया गया है।
लेकिन मेरे सामने प्रश्न आया है कि इस सम्बन्ध में शास्त्र सम्मत प्रमाण आधार युक्त जानकारी व्यवस्था क्या है? जो शास्त्र सम्मत प्रमाण आधार युक्त जानकारी है वह मैं प्रेषित कर रहा हूं।।
ध्यान रहे:-
कुछ पंचांगकार सम्पादकों ने भी ग्रहणकाल से पूर्व खीर बनाने की तथा अनेक शहरों के ब्राह्मणों पुरोहितों आचार्यों ने यजमानों को प्रसन्न रखने हेतु खीर बनाकर रखने की अनुमति दे दी है। तथा बहुत से शहरों में ब्राह्मणों पुरोहितों आचार्यों ने अखबारों में भी प्रकाशित करवा रखा है।।
लेकिन ध्यान रखें उन सभी का यह कथन केवल लोगों के मन की बात बनाये रखने का ही है :-
शास्त्र सम्मत प्रमाण आधार युक्त नहीं है।। शास्त्र सम्मत प्रमाण आधार युक्त जानकारी यही है कि आप खीर गाय के दूध से बनाकर सूतक काल से पहले रख ही नहीं सकते हैं।। इसका शास्त्र सम्मत कोई विकल्प कोई परिहार नहीं है।।
अतः सभी विद्वानों को शास्त्रों में वर्णित नियमानुसार ही समाज को बताया जाना चाहिए।। शास्त्र विरुद्ध अशास्त्रीय मनमानी आचरण करते हुए समाज को दिग्भ्रमित नहीं करना चाहिए।
हां यदि कोई रात्रि में 29 तारीख की रात्रि को 2:23 ग्रहणकाल के बाद सचैल वस्त्र सहित स्नान करने के उपरान्त कुश तिल पड़ा हुआ दूध से खीर बनाकर रखता है तो शास्त्र सम्मत प्रमाण आधार युक्त सही तरीका होगा।।
लेकिन रात्रि में सभी वर्णों के लिए करना ऐसा सम्भव नहीं है।। जो नहीं कर सकते हैं वे न ही करें तो ज्यादा बेहतर उत्तम अच्छा रहेगा।।
देश और दुनिया में कहां- कहां दिखाई देगा ग्रहण-:
चंद्रग्रहण भारत, ऑस्ट्रेलिया, संपूर्ण एशिया, यूरोप, अफ्रीका, दक्षिणी-पूर्वी अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, कैनेडा, ब्राजील , एटलांटिक महासागर में यह ग्रहण दिखाई देगा। भारत में यह ग्रहण शुरुआत से अंत तक दिखाई देगा।
सूतक काल में न करें ये काम-:
चंद्रग्रहण का सूतक शाम में 4 बजकर 5 मिनट पर प्रारंभ हो जाएगा। इस दौरान आपको किसी प्रकार का मांगलिक कार्य, स्नान, हवन और भगवान की मूर्ति का स्पर्श नहीं करना चाहिए। इस समय आप अपने गुरु मंत्र, भगवान नाम जप, श्रीहनुमान चालीसा कर सकते हैं।
चंद्र ग्रहण- सूतक काल के दौरान भोजन बनाना व भोजन करना भी उचित नहीं है। हालांकि, सूतक काल में गर्भवती स्त्री, बच्चे, वृद्ध जन भोजन कर सकते हैं। ऐसा करने से उन्हें दोष नहीं लगेगा। ध्यान रखें की सूतक काल आरंभ होने से पहले खाने पीने की चीजों में तुलसी के पत्ते डाल दें। इसके अलावा आप इसमें कुश भी डाल सकते हैं।
चंद्र ग्रहण पुण्य काल-:
चंद्र, ग्रहण से मुक्त होने के बाद स्नान- दान- पुण्य- पूजा उपासना इत्यादि का विशेष महत्व है। अतः 29 अक्टूबर, सुबह स्नान के बाद भगवान की पूजा- उपासना, दान पुण्य करें। ऐसा करने से चंद्र ग्रहण के अशुभ प्रभाव कम होते हैं।
देश और दुनिया में कहां- कहां दिखाई देगा ग्रहण-:
चंद्रग्रहण भारत, ऑस्ट्रेलिया, संपूर्ण एशिया, यूरोप, अफ्रीका, दक्षिणी-पूर्वी अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, कैनेडा, ब्राजील , एटलांटिक महासागर में यह ग्रहण दिखाई देगा। भारत में यह ग्रहण शुरुआत से अंत तक दिखाई देगा।
चंद्र ग्रहण कब और कैसे होता है :-
चंद्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन होता है जब पृथ्वी सूर्य और चन्द्रमा के बीच आती है | पृथ्वी की छाया चन्द्रमा मे पड़ती है | जिससे यह कुछ देर या घंटों तक धुंधला हो जाता है या कभी कभी लाल लाल दिखाई पड़ता है |
चंद्र ग्रहण पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार देवों और दानवों के बीच समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों में एक अमृत कलश भी निकला था. इसके लिए देवताओं और दानवों में विवाद होने लगा. इसको सुलझाने के लिए मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया. मोहिनी रूप धारण किये हुए भगवान विष्णु ने अपने हाथ में अमृत कलश देवों और दानवों में समान भाग में बांटने का विचार रखा, जिसे भगवान विष्णु के मोहिनी रूप से आसक्त होकर दानवों ने स्वीकार कर लिया. तब भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग लाइन में बैठा दिया.
दानवों के साथ कुछ गलत हो रहा है. इसकी भनक दैत्यों की पंक्ति में स्वर्भानु नाम के दैत्य को लग गई. उसे यह आभास हुआ कि मोहिनी रूप में दानवों के साथ धोखा किया जा रहा है. ऐसे में वह देवताओं का रूप धारण कर सूर्य और चन्द्रमा के बगल आकर बैठ गए. जैसे ही अमृत पान को मिला, वैसे ही सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया और यह बात भगवान विष्णु को बताई, जिस पर क्रोधित होकर नारायण भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र के राहु के गले पर वार किया, लेकिन तब तक राहु अमृत पी चुका था. इससे उसकी मृत्यु तो नहीं हुई, परन्तु उसके शरीर के दो धड़ जरूर हो गए.
सिर वाले भाग को राहु और धड़ वाले भाग को केतु कहा गया. इसके बाद ब्रह्मा जी ने स्वर्भानु के सिर को एक सर्प वाले शरीर से जोड़ दिया. यह शरीर ही राहु कहलाया और उसके धड़ को सर्प के दूसरे सिरे के साथ जोड़ दिया, जो केतु कहलाया. सूर्य और चंद्रमा के पोल खोलने के कारण राहु और केतु दोनों इनके दुश्मन बन गए. इसी कारण ये राहु और केतु पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा को ग्रस लेते है |
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