गुरुवार, 30 नवंबर 2023

मार्गशीर्ष (अहगन) मास का महत्त्व, मार्गशीर्ष माह नाम कैसे पड़ा, अगहन माह के विशेष पर्व

 मार्गशीर्ष (अहगन) मास का महत्त्व

मार्गशीर्ष (अहगन) मास का महत्त्व

मार्गशीर्ष मास में श्रद्धा और भक्ति से प्राप्त पुण्य के बल पर हमें सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस माह में नदी स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष मास की महत्ता गोपियों को भी बताई थी।उन्होंने कहा था कि मार्गशीर्ष माह में यमुना स्नान से मैं सहज ही सभी को प्राप्त हो जाऊंगा।


चन्द्र माहों की श्रेणी में मार्गशीर्ष माह नवें स्थान पर आता है| यह माह अगहन माह के नाम से भी जाना जाता है| इस माह में भगवान विष्णु एवं उनके शंख की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है| इस माह के दौरान पूजा-पाठ और स्नान-दान का भी उल्लेख मिलता है| मार्गशीर्ष पूर्णिमा और संक्रांति के दौरान किया गया दान व्यक्ति को जीवन में सुख प्रदान करने वाला होता है| व्यक्ति के पुण्य कर्मों में वृद्धि होती है और पापों का नाश होता है।


गीता में स्वयं भगवान ने कहा है मासाना मार्गशीर्षोऽयम्


भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों को भी मार्गशीर्ष मास के महत्व के बारे में बताया था| उन्होंने कहा था कि मार्गशीर्ष माह में यमुना स्नान से मैं सहज ही सभी को प्राप्त हो जाऊंगा| कहा जाता है कि इसी के बाद से इस महीने पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व माना जाता है।


इस माह की महत्ता का विषय में कहा गया है कि मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही सतयुग का आरंभ हुआ और इसी माह समय पर महर्षि कश्यप जी ने कश्मीर प्रदेश की रचना की थी| इसी के साथ भगवान कृष्ण यह भी कहते हैं की मासों में मैं मार्गशीर्ष मैं ही हूं।


मार्गशीर्ष माह नाम कैसे पड़ा


इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से होने के कारण इसे मार्गशीर्ष नाम मिला| इसके अलावा मार्गशीर्ष भगवान श्री कृष्ण का ही एक रुप भी बताया गया है, साथ ही साथ इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र में होती है, अत: ऎसे में इन सभी का संयोग ही इस माह को मार्गशीर्ष माह का नाम देता है।


मार्गशीर्ष माह में जन्म लेने वाला व्यक्ति


मार्गशीर्ष माह में जिस व्यक्ति का जन्म हो, उस व्यक्ति की वाणी मधुर होती है| वह धनी होता है और उसकी धर्म-कर्म में आस्था होती है| ऎसा व्यक्ति अनेक मित्रों से युक्त होता है, साथ ही पराक्रम भाव से वह अपने सभी कार्यो को पूरा करने में सफल होता है| परोपकार के कार्यो में वह स्वत: रुचि लेता है।


इस माह में जन्मा जातक अपनी व्यवहार कुशलता से लोगों को प्रभावित कर सकता है| बाहरी संपर्क से भी जातक को लाभ मिलता है| घरेलू जीवन में संघर्ष रहता है| जीवन में आने वाली बाधाओं और अव्यवस्था से बचने के लिए जातक को भगवान दामोदर की पूजा करनी चाहिए| आर्थिक संपन्नता पाने के लिए घर में शंख रखें और उसका पूजन करना चाहिए।


मार्गशीर्ष माह में किए जाने वाले उपाय


यह माह पवित्र माह माना जाता है| इसकी शुभता का उल्लेख शास्त्रों में भी किया गया है| इस माह में एकादशी या द्वादशी का उपवास करने वाले व्यक्ति के सभी पाप दूर होते है, और उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुलते है. इसके अतिरिक्त इस माह की पूर्णिमा को चन्द्र देव की विशेष रुप से पूजा की जाती है, मार्गशीर्ष माह में आने वाली एकादशी मोक्षदा एकादशी कही जाती है| इस एकादशी को मोक्ष देने वाली कहा गया है| इस माह शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि को चार धाम तीर्थ स्थलों के कपाट बन्द होते है।


अगहन माह की महत्वपूर्ण बातें


अगहन माह के समय भगवान विष्णु के चतिर्भुज रुप का पूजन करना उत्तम होता है।


मार्गशीर्ष माह में भागवत पढ़ने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है।


इस माह में नदी में स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है।


इस माह के समय पर यमुना नदी में स्नान करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।


इस माह तुलसी के पत्तों को जल में मिला कर स्नान करना चाहिए।


इस माह प्रात:काल समय ॐ नमो नारायणाय और गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए।


इस माह में भोजन में जीरे का उपयोग नहीं करना चाहिए।


अगहन माह के विशेष पर्व


मार्गशीर्ष पूर्णिमा मंगलवार 26 दिसंबर  मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है| इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है की इस दिन किए गए दान का फल बत्तीस गुणा होकर मिलता है| ऎसे में इस पूर्णिमा की महत्ता खुद ब खुद स्पष्ट होती है| इस पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का पूजन होता है और अर्घ्य दिया जाता है| इसके साथ ही सत्यनारायण कथा का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस पूर्णिमा के दिन गंगा और यमुना नदी में स्नान करना भी उत्तम होता है।


काल भैरवाष्टमी मंगलवार 5 दिसंबर  मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्री कालभैरवाष्टमी मनाई जाती है| इस दिन काल भैरव की पूजा की जाती है| भैरवाष्टमी या कालाष्टमी के दिन पूजा उपासना द्वारा सभी शत्रुओं का नाश होता है| भैरवाष्टमी के दिन व्रत एवं षोड्षोपचार पूजन करना अत्यंत शुभ एवं फलदायक माना जाता है।


मार्गशीर्ष एकादशी 8 एवं 22 दिसंबर  मार्गशीर्ष माह में होने वाली एकादशी का व्रत भी बहुत ही महत्वपुर्ण होता है| इस एकादशी के दिन किए जाने वाला व्रत एवं दान व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करता है और व्यक्ति जीवन में सफलता पाता है।


पिशाचमोचन श्राद्ध सोमवार 25 दिसंबर मार्गशीर्ष माह में आने वाला पिशाच मोचन श्राद्ध काफी महत्वपूर्ण होता है| श्राद्ध के अनेक विधि-विधान बताए गए हैं जिनके द्वारा इनकी शांति व मुक्त्ति संभव होती है| इस दिन पर अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों का श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

रविवार, 12 नवंबर 2023

दीपावली पूजन में दिन के मुहूर्त,रात्रि के लगन, श्री महालक्ष्मी पूजन एवं अन्य त्यौहार

 दीपावली पूजन में दिन के मुहूर्त


दीपावली पूजन


 जो भी व्यापारी अपने उद्योग धंधे,व्यवसाय,दुकानदारी, प्रतिष्ठान आदि में लक्ष्मी पूजन करना चाहते हैं वह  सभी धनु लग्न में कर सकते हैं क्योंकि धनु लग्न का स्वामी गुरु ग्रह है I शुभ ग्रह होने से गुरु  सफलता में सहायता प्रदान करता है | 

इस वर्ष धनु लग्न प्रात: 9:20 से शुरू होकर दोपहर 11:24 तक विद्यमान रहेगा | अतः धनु लग्न का स्वामी ग्रह बृहस्पति पंचम भाव में स्थित होकर लगन को देख रहा है साथ ही वह धन और लाभ, ज्ञान और विवेक का कारक भी है I इसलिए सभी व्यापारी, उद्योगपति को शुद्ध बुद्धि, धन संपदा प्रदान करेगा I जिससे वह उन्नति की ओर अग्रसर होते जाएंगे I

 धनु लग्न के अतिरिक्त भी आप शुभ चौघड़िया में अपने कार्य स्थल व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में पूजन कर सकते हैं I

लाभ की चौघड़िया सुबह 9:24 से प्रारंभ होकर सुबह 10:44 तक विद्यमान रहेगी I


 उसके पश्चात अमृत की चौघड़िया प्रातः 10:44 से दोपहर 12:05मिनट तक विद्यमान रहेगी और दोपहर में 1:26 से 2:46 तक शुभ की चौघड़िया विद्यमान रहेगी I इन सभी शुभ चौघड़िया में व्यावसायिक स्थल, उद्योग, फैक्ट्री, कार्यस्थल तथा दुकान आदि मे श्री 

महालक्ष्मी एवं श्री गणेश जी का पूजन करना शुभ फलदायक रहेगा I

 

दीपावली पूजन रात्रि के लगन

🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴

 दीपावली पूजन स्थिर लग्न में करना शुभ फलदायक माना गया I उसमें विशेष तौर पर वृषभ लग्न जो कि शुक्र ग्रह का है स्वयं ऐश्वर्य,धन संपदा, सभी सुख सुविधाओं का और लक्ष्मी का कारक माना गया है I

 अत: दीपावली की रात्रि वैला में वृषभ लग्न शाम 5:35 से प्रारंभ होकर रात्रि 7:31 तक विद्यमान रहेगा I जिसमें शुभ के चौघड़िया की व्याप्ति तथा प्रदोष काल की स्थिति भी इस लग्न को और सर्वश्रेष्ठ बनाती है I अतः जो भी अपनी उन्नति, सफलता, ऐश्वर्य, धन संपदा और सुख शांति की इच्छा रखता है I वह सभी लोग अर्थात गृहस्थी अपने-अपने घर में तथा उद्योग, कार्यस्थल, टूर एंड ट्रेवल्स का कार्य करने वाले, ट्रांसपोर्ट का कार्य करने वाले सभी लोग वृषभ लग्न मे अर्थात शाम को 5:35 से 7:31 के बीच में श्री महालक्ष्मी एवं श्री गणेश जी का पूजन विधि विधान एवं श्रद्धा और भाव से करना चाहिए I


 यदि किसी कारणवश इस लग्न में पूजन नहीं कर पाए तो अमृत की चौघड़िया रात्रि 7:07 से रात्रि 8:47 तक विद्यमान रहेगी I इस समय मां लक्ष्मी का पूजन करना भी अत्यंत सफलता दायक और सौभाग्य प्रद रहेगा I

 इसके अतिरिक्त भी कर्क लग्न रात्रि 9:45 से प्रारंभ होगा जो रात्रि 12:04 तक विद्यमान रहेगा I कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा सुख स्थान में स्थित होगा I जिससे इस दौरान पूजा करने वाले वर्ष मध्य सुख का अनुभव करेंगे I

 सिंह लग्न रात्रि 12:04 से प्रारंभ होकर के और निशीथकाल के समय तक विद्यमान रहेगा | इस समय भी दीपावली पूजन करना सभी कार्यों में सिद्धि दायक और सहायक माना जाएगा |

 अतः ऊपर दिए गए किसी भी शुभ कालखंड में मां लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन करना शुभ फलदायक और मंगलप्रद रहेगा I


 श्री महालक्ष्मी पूजन एवं अन्य त्यौहार

🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺

( 10 November To 15 November 2023 )


 10 नवंबर सन 2023 वार शुक्रवार, द्वादशी तिथि, अमृत योग में गोवत्स द्वादशी, गौ सेवा और धनत्रयोदशी( धनतेरस) अर्थात श्री धन्वंतरि जयंती मनाई जाएगी I


 11 नवंबर सन 2023 वार शनिवार, त्रयोदशी तिथि, काण योग में नरक चतुर्दशी,रूप चतुर्दशी, तेलाभयंगस्नान, स्वर्णमीदेवी दर्शन काशी, श्री हनुमान जन्म लग्न एवं मासशिवरात्रि मनाई जाएगी I


 12 नवंबर सन 2023 वार रविवार को दीपावली का पावन पर्व और दीपोत्सव  तथा स्वामी रामतीर्थ जन्मपरिनिर्वाण दिवस मनाया जाएगा I


 14 नवंबर सन 2023 प्रतिपदा तिथि मंगलवार को अन्नकूट, श्री गोवर्धन पूजा, बलि पूजा, गोक्रीड़ा और द्युतक्रीडा का पर्व मनाया जाएगा I


 15 नवंबर सन 2023 वार बुधवार द्वितीया तिथि को भैया दूज, यम द्वितीया,चित्रगुप्त एवं विश्वकर्मा पूजा का पर्व मनाया जाएगा I


दीपावली पूजन:-

 इस वर्ष श्री महालक्ष्मी पूजन अर्थात दीपावली का त्यौहार कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि, रविवार को मनाया जाएगा I क्योंकि 12 नवंबर को चतुर्दशी तिथि दोपहर 2:44 पर समाप्त हो रही है और अमावस्या तिथि प्रारंभ होकर अगले दिन 13 नवंबर सोमवार के दिन दोपहर 2:56 पर समाप्त हो रही है ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि रात्रि के समय 13 नवंबर को नहीं मिल रही है I इस कारण से 12 नवंबर को ही दीपावली का पर्व मनाना शास्त्र सम्मत रहेगा |

 अत: दीपावली का यह पावन पर्व बड़ी धूमधाम एवं प्रसन्नता के साथ 12 नवंबर रविवार के दिन मनाएं 

 12 नवंबर को स्वाति नक्षत्र दोपहर 2:50 तक रहेगा उसके बाद विशाखा नक्षत्र प्रारंभ हो जाएगा I आयुष्मान योग शाम 4:23 तक विद्यमान रहेगा I इसके बाद सौभाग्य योग प्रारंभ हो जाएगा I तिथि व वार के योग से लूंबक योग बना हुआ है I स्वाति नक्षत्र एवं सौभाग्य योग में अमावस होना श्रेष्ठ माना गया है जिसमें दुकानदारी करना, व्यापारिक लेनदेन, ज्ञानार्जन, शिल्प, चित्रकारी, कलाकर्म, वाहन लेनदेन, संचालन करना आदि सभी कार्य उत्तम रहते हैं |




गुरुवार, 9 नवंबर 2023

कार्तिक माह के मुख्य व्रत एवं त्योहार

 कार्तिक माह के मुख्य व्रत एवं त्योहार

कार्तिक माह के मुख्य व्रत एवं त्योहार

कार्तिक स्नान प्रारंभ

भगवान विष्णु की कृपा से जीवन के समस्त सुख, भोग की प्राप्ति और मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्ति की कामना से कार्तिक माह में प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व जागकर तारों की छाया में स्नान किया जाता है। दिनभर व्रत रखकर रात्रि में तारों की छाया में भोजन किया जाता है


करवाचौथ

शरद पूर्णिमा के बाद कार्तिक माह का पहला व्रत है करवाचौथ। यह व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन होता है। पति की दीर्घ आयु और स्वस्थ जीवन की कामना के साथ यह व्रत विवाहित महिलाएं करती हैं। इस दिन निराहार, निर्जला रहते हुए स्ति्रयां व्रत करती हैं। भगवान गणेश की पूजा करती हैं और रात्रि में चंद्रदर्शन के बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं।


अहोई अष्टमी, रवि पुष्य

यह व्रत कार्तिक मास की अष्टमी तिथि के दिन किया जाता है। यह व्रत महिलाएं अपनी संतान के दीर्घ और स्वस्थ जीवन के लिए करती हैं। इस व्रत को संतान आठे के नाम से भी जाना जाता है। नि:संतान स्ति्रयां भी संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं। इस व्रत में गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाकर उनकी पूजा की जाती है। यह व्रत उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर किया जाता है। इस दिन रविवार और पुष्य नक्षत्र के संयोग से रवि-पुष्य का शुभ संयोग भी बना है, जो समस्त प्रकार की खरीददारी के लिए शुभ है।


रमा एकादशी

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी का व्रत समस्त प्रकार के सुख, भोग, भौतिक सुख-सुविधाएं देने वाला कहा गया है। व्रत के प्रभाव से जीवन के संकटों, परेशानियों का नाश होता है। इसमें पूर्ण व्रत रखते हुए भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप का ध्यान-पूजा की जाती है।


गोवत्स द्वादशी

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी कहा जाता है। इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर गाय-बछड़ों की पूजा की जाती है। उन्हें गेहूं से बनी चीजें खिलाई जाती है। इस दिन व्रत करने वाले गाय के दूध और इससे बनी वस्तुओं का सेवन नहीं करते। गेहूं से बने पदार्थ और कटे फल भी नहीं खाते।


धनतेरस, यम दीपदान

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को आयुर्वेद के देवता भगवान धनवंतरि का जन्मोत्सव मनाया जाता है। दीपावली से दो दिन पहले वाले धनतेरस को धन की पूजा की जाती है। इस दिन नए बर्तन, सोना-चांदी खरीदने का विधान है। व्यापारी लोग इस दिन अपने प्रतिष्ठानों में नई गादी बिछाकर, बही-खाता की पूजा करते हैं। धनतेरस के दिन से पांच दिवसीय दीपावली पर्व की शुरुआत होती है। तिथि संयुक्त होने के कारण इस रात्रि में यम दीपदान किया जाएगा।


रूप चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी, नरक चतुर्दशी, नरक चौदस कहा जाता है। मान्यता है किइस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षण का वध उसके आतंक से संसार को मुक्ति दिलाई थी। यह रूप निखारने का दिन भी माना जाता है। इस दिन घरों में लोग उबटन लगाकर स्नान करते हैं और अपने रूप को चमकाते हैं।


दीपावली

कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है। यह हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार है। पांच दिनी पर्व का यह मुख्य दिन होता है। दीपावली की तैयारियां कई दिन पहले से प्रारंभ हो जाती है। घरों में साफ-सफाई, रंग-रोगन किया जाता है और घरों को खूबसूरत लाइटिंग से सजाया जाता है। इस दिन रात्रि में मां लक्ष्मी पूजा, गणेश और सरस्वती माता की जाती है और उनसे वर्ष अन्न, धन के भंडार भरने की कामना की जाती है। लंकापति रावण का वध करने के बाद भगवान श्रीराम इस दिन अयोध्या लौटे थे। इस खुशी में अयोध्या को दीपमालाओं से सजाया गया था। इस दिन पटाखे चलाकर खुशियां मनाई जाती है। मिठाइयों से एक-दूसरे का मुंह मीठा कराया जाता है।


गोवर्धन पूजा, अन्नकूट महोत्सव

कार्तिक माह के शुक्लपक्ष का पहला दिन गोवर्धन पूजा के नाम रहता है। इसकी परंपरा भगवान श्रीकृष्ण ने प्रारंभ करवाई थी। इस दिन दिन गायों को धन मानते हुए उनके सजाया-संवारा जाता है और उनकी पूजा की जाती है। ग्रामीण घरों में इस दिन प्रकीतात्मक रूप में गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है और उसकी परिक्रमा की जाती है। इस दिन अन्नकूट महोत्सव भी मनाया जाता है।


भाई दूज, यम द्वितीया, चंद्र दर्शन

कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन भाई दूज या यम द्वित्तीया मनाया जाता है। पांच दिवसीय दीपोत्सव पर्व का समापन इसी दिन होता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को भोजन करवाकर उन्हें तिलक करती हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करती है। भाई बहनों को उपहार देते हैं।


छठ पूजा प्रारंभ

भगवान सूर्य की आराधना का पर्व छठ पूजा मुख्यत: बिहार, झारखंड, पूर्वाचल में मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन से प्रारंभ होने वाला यह पर्व 18 नवंबर से प्रारंभ होगा। इसमें नहाय खाय, खरना, सांध्य अ‌र्घ्य किया जाता है। 20 नवंबर को छठ पूजा होगी। प्रात: अ‌र्घ्य के साथ व्रत का पारणा होगा।


आंवला नवमी, अक्षय नवमी

कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन आंवला नवमी या अक्षय नवमी मनाई जाती है। इस दिन आंवले के वृक्ष का पूजन करके इसके नीचे बैठकर भोजन करने का महत्व है। कहा जाता है इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण वृंदावन को छोड़ मथुरा गए थे। यह व्रत परिवार के सुख-सौभाग्य के लिए किया जाता है।


देवोत्थान एकादशी, देव उठनी एकादशी

कार्तिक शुक्ल एकादशी देवोत्थान एकादशी होती है। यह वर्ष की सबसे बड़ी एकादशी है क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु चार माह के शयनकाल से जागते हैं। चातुर्मास का समापन इसी एकादशी के दिन होता है। इस दिन से विवाह प्रारंभ हो जाते हैं और वर्ष का स्वयंसिद्ध मुहूर्त होता है। हिंदू परिवार इस दिन छोटी दीवाली मनाते हैं। सायंकाल में तुलसी विवाह किया जाता है।


बैकुंठ चतुर्दशी, हरिहर मिलन

बैकुंठ चतुर्दशी के दिन हरि और हर अर्थात् विष्णु और शिव का मिलन होता है। चातुर्मास के चार माह भगवान विष्णु के शयनकाल में रहने के कारण पृथ्वी का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। देवोत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं। उसके बाद बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव पुन: यह कार्यभार भगवान विष्णु को सौंपते हैं। यह एकमात्र ऐसा दिन होता है जब शिव को तुलसी और विष्णु को बिल्व पत्र अर्पित किया जाता है।


देव दीवाली, कार्तिक पूर्णिमा

कार्तिक पूर्णिमा के साथ कार्तिक माह का समापन हो जाता है। इस दिन देव दीवाली मनाई जाती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था। इसी दिन गुरुनानक देव जी का प्रकाशोत्सव मनाया जाता है। इस दिन घरों को दीपों से सजाया जाता है। पवित्र नदियों में दीपदान किया जाता है। जो लोग कार्तिक स्नान और कार्तिक व्रत रखते हैं वे इस दिन व्रत का उजमना करते हैं


बुधवार, 1 नवंबर 2023

करवा चौथ 1 नवम्बर 2023 विशेष ,सरगी का महत्त्व,चौथ की पूजन सामग्री और व्रत की विधि,करवा चौथ पूजन विधि

 करवा चौथ 1 नवम्बर  2023 विशेष

करवा चौथ


करवा चौथ व्रत का हिन्दू संस्कृति में विशेष महत्त्व है। इस दिन पति की लम्बी उम्र के पत्नियां पूर्ण श्रद्धा से निर्जला व्रत रखती  है। 


कार्तिक मास की चतुर्थी को करवा चौथ का त्योहार मनाया जाता है. इस साल एक नवंबर को करवा चौथ का व्रत रखा जाएगा. दरअसल, इस साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 31 अक्टूबर मंगलवार रात 9 बजकर 30 मिनट से शुरू होकर एक नवंबर रात 9 बजकर 19 मिनट तक है. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, करवा चौथ का व्रत बुधवार एक नवंबर को रखा जायेगा।


1 नवंबर को चन्द्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में होंगे। इसी के साथ मंगल, बुध और सूर्य तुला राशि में हैं। सूर्य और बुध बुधादित्य योग बना रहे हैं तो मंगल और सूर्य मिलकर मंगलादित्य योग बना रहे हैं। शनि भी 30 साल बाद अपनी मूलत्रिकोण राशि कुंभ में शश योग बना रहे हैं। इस दिन शिवयोग मृगशिरा नक्षत्र और बुधादित्य योग का संगम रहेगा। शिव योग शिव को समर्पित, मृगशिरा नक्षत्र मंगल को समर्पित, बुधादित्य योग यश और ज्ञान का प्रतीक माना गया है। इन योगों से पर्व का महत्व हजारों गुना बढ़ गया है।


करवा चौथ महात्म्य

〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इससे जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। साथ ही साथ इससे लंबी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है। करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणोश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अघ्र्य देकर पूजा होती है। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल,उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास अथवा सास के समकक्ष किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट करनी चाहिए।


महाभारत से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आन पड़ते हैं। द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। इस प्रकार की कथाओं से करवा चौथ का महत्त्व हम सबके सामने आ जाता है।


सरगी का महत्त्व

〰️〰️〰️〰️〰️〰️

करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है। सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाती है। इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं। सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं। सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है। सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल, मीठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल में तारों की छांव में ग्रहण करती हैं। तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है। अपने व्रत को पूर्ण करती हैं।


महत्त्व के बाद बात आती है कि करवा चौथ की पूजा विधि क्या है? किसी भी व्रत में पूजन विधि का बहुत महत्त्व होता है। अगर सही विधि पूर्वक पूजा नहीं की जाती है तो इससे पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता है।


चौथ की पूजन सामग्री और व्रत की विधि   

〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

करवा चौथ पर्व की पूजन सामग्री👇


कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, दक्षिणा के लिए पैसे। सम्पूर्ण सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें। 


व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें तथा शृंगार भी कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का  विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।


करवा चौथ पूजन विधि

〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृ्त होकर संकल्प लें और व्रत आरंभ करें।

व्रत के दिन निर्जला रहे यानि जलपान ना करें।

व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-

प्रातः पूजा के समय इस मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ किया जाता है- 


'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'


अथवा👇

ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का, 

'ॐ नमः शिवाय' से शिव का, 

'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का तथा 

'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।


शाम के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी अथवा लकड़ी के आसार पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात माँ पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें।


भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित करें।


सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें। चंद्रोदय के बाद चाँद को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथ से जल एवं मिष्ठान खा कर व्रत खोले।


पूजा एवं चन्द्र को अर्घ्य देने का मुहूर्त

〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

कार्तिक कृष्ण चतुर्थी (करवाचौथ) 1 नवम्बर को करवा चौथ पूजा मुहूर्त- सायं 05:35 से 06:55 बजे तक।


चंद्रोदय- 20:06 मिनट पर।


चतुर्थी तिथि प्रारम्भ 👉  31 अक्टूबर को रात्रि 09:30 बजे से।


चतुर्थी तिथि समाप्त 👉  01 नवम्बर को रात्रि 09:19 बजे।


13 घंटे 26 मिनट का समय व्रत के लिए है। ऐसे में महिलाओं को सुबह 6 बजकर 40 मिनट से शाम 08 बजकर 06 मिनट तक करवा चौथ का व्रत रखना होगा।


करवा चौथ के दिन चन्द्र को अर्घ्य देने का समय रात्रि 8:07 बजे से 8:55 तक है।


करवाचौथ के दिन भारत के कुछ प्रमुख नगरों का चंद्रोदय समय 

〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

नई दिल्ली – रात 8:15 बजे

लखनऊ – रात 8:05 बजे

नोएडा- रात 8:14 बजे

गुरुग्राम- रात 8:16 बजे

मुंबई – रात 8:59 बजे

चेन्नई- रात 8:43 बजे

आगरा – रात 8:16 बजे

कोलकाता- शाम 7:46 बजे

भोपाल – रात 8:29 बजे

अलीगढ़ – रात 8:13 बजे

हिमाचल प्रदेश – रात 8:07 बजे

पणजी- रात 9:04 बजे

जयपुर – रात 8:26 बजे

पटना- शाम 7:51 बजे

चंडीगढ़ – रात 8:10 बजे

पुणे- रात 8:56 बजे

हैदराबाद – रात 8:40 बजे

भुवनेश्वर – रात 8:02 बजे

कानपुर – रात्रि 8:08 बजे


 इन शहरों के लगभग 200 किलोमीटर के आसपास तक चंद्रोदय के समय मे 1 से 3 मिनट का अंतर आ सकता है।


प्राचीन मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। 


चंद्रदेव को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का जप अवश्य  करना चाहिए। अर्घ्य देते समय इस मंत्र के जप करने से घर में सुख व शांति आती है।


"गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।

गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥"


इसका अर्थ है कि सागर समान आकाश के माणिक्य, दक्षकन्या रोहिणी के प्रिय व श्री गणेश के प्रतिरूप चंद्रदेव मेरा अर्घ्य स्वीकार करें।


सुख सौभाग्य के लिये राशि अनुसार उपाय


मेष राशि👉  मेष राशि की महिलाएं करवा चौथ की पूजा अगर लाल और गोल्डन रंग के कपड़े पहनकर करती हैं तो आने वाला समय बेहद शुभ रहेगा।  


वृषभ राशि👉 वृषभ राशि की महिलाओं को इस करवा चौथ सिल्वर और लाल रंग के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से आने वाले समय में पति-पत्नी के बीच प्यार में कभी कमी नहीं आएगी। 


मिथुन राशि👉 इस राशि की महिलाओं के लिए हरा रंग इस करवा चौथ बेहद शुभ रहने वाला है। इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ के दिन हरे रंग की साड़ी के साथ हरी और लाल रंग की चूड़ियां पहनकर चांद की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपके पति की आयु निश्चित लंबी होगी।  


कर्क राशि👉 कर्क राशि की महिलाओं को करवा चौथ की पूजा विशेषकर लाल-सफेद रंग के कॉम्बिनेशन वाली साड़ी के साथ रंग-बिरंगी चूडि़यां पहनकर पूजा करनी चाहिए। याद रखें इस राशि की महिलाओं को व्रत खोलते समय चांद को सफेद बर्फी का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से आपके पति का प्यार आपके लिए कभी कम नहीं होगा। 


सिंह राशि👉 करवा चौथ की साड़ी चुनने के लिए इस राशि की महिलाओं के पास कई विकल्प मौजूद हैं। इस राशि की महिलाएं लाल, संतरी, गुलाबी और गोल्डन रंग चुन सकती है। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से शादीशुदा जोड़े के वैवाहिक जीवन में हमेशा प्यार बना रहता है। 


कन्या राशि👉 कन्या राशि वाली महिलाओं को इस करवा चौथ लाल-हरी या फिर गोल्डन कलर की साड़ी पहनकर पूजा करने से लाभ मिलेगा। ऐसा करने से दोनों के वैवाहिक जीवन में मधुरता बढ़ जाएगी।


तुला राशि👉 इस राशि की महिलाओं को पूजा करते समय लाल- सिल्वर रंग के कपड़े पहनने चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनने पर पति का साथ और प्यार दोनों हमेशा बना रहेगा। 


वृश्चिक राशि👉 इस राशि की महिलाएं लाल, मैरून या गोल्डन रंग की साड़ी पहनकर पूजा करें तो पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ जाएगा। 


धनु राशि👉 इस राशि की महिलाएं पीले या आसमानी रंग के कपड़े पहनकर पति की लंबी उम्र की कामना करें।  


मकर राशि👉 मकर राशि की महिलाएं इलेक्ट्रिक ब्लू रंग करवा चौथ पर पहनने के लिए चुनें। ऐसा करने से आपके मन की हर इच्छा जल्द पूरी होगी। 


कुंभ राशि👉 ऐसी महिलाओं को नेवी ब्लू या सिल्वर कलर के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से गृहस्थ जीवन में सुख शांति बनी रहेगी। 


मीन राशि👉 इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ पर लाल या गोल्डन रंग के कपड़े पहनना शुभ होगा। 

Impotant

रोचक कहानी संपत्ति बड़ी या संस्कार

       दक्षिण भारत में एक महान सन्त हुए तिरुवल्लुवर। वे अपने प्रवचनों से लोगों की समस्याओं का समाधान करते थे। इसलिए उन्हें सुनने के लिए दूर-...